समय का मन और समय के पार
हमने जब भी अपने संसार में जब भी कोई अंत देखा है तो उसके बाद सदा एक प्रारंभ देखा है। ये कमरा यहाँ अंत होता है तो उसके बाद एक दूसरी जगह शुरू होती है। कुछ भी जहाँ ख़त्म होता है, वहाँ से कुछ न कुछ शुरू ज़रूर होता है। तो जब भी कोई कहता है कि समय खत्म हुआ तो हम अपनी आदत से मजबूर हो कर कहते हैं कि फिर क्या शुरू होता है। हम उसे भी द्वैत के अंदर रखना चाहते हैं कि इसका अंत हो रहा है तो कुछ न कुछ शुरू ज़रूर होगा।
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