समझ और ध्यान में क्या सम्बन्ध है?
आप तय करते हो मन को क्या दिशा देनी है। मन जिस वस्तु की दिशा में देख रहा होता है उसे कहते हैं विषय, उसे ध्येय भी कह सकते हो। मन द्वारा किसी निश्चित दिशा में देखने को ध्यान कहते है। मन जब किसी को बड़ी तल्लीनता से पकड़े रहे, देखता रहे, उसी की दिशा में केन्द्रित रहे, तो इसको कहते हैं ध्यान।
दर्शन के लिए दृश्य चाहिए, ध्यान के लिए ध्येय चाहिए। ध्यान आपके मूल्यों पर आश्रित होता है। आप तय करते हो कि जिधर को जेहन जा रहा है उधर को जाने देना है कि नहीं देना है और किधर को ध्यान जा रहा है इससे आपके मूल्यों के बारे में पता चलता है। जो कुछ भी मूल्यवान होगा उसी को आप अपना ध्येय बनाओगे। ये ध्यान हुआ।
जिसको ध्येय बनाया, जब वो मिल ही जाए तो ये अवस्था बोध या समझ की कहलाती है। ध्यान का फल बोध है।
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