सभ्यता किस लिए है?
अपनी कहे मेरी सुने, सुनी मिली एकै होय ।
हमरे खेवे जग जात है, ऐसा मिला न कोय।।~ संत कबीर
कबीर हमसे कह रहे हैं कि ये कहना और ये सुनना, एक है; एक ही इसमें घटना चल रही है।अपने छिटकेपन को बचाने की। मैं अपनी कहानी सुना रहा हूँ, मैं तुम्हारी कहानी सुन रहा हूँ।ध्यान दीजिये, मैं अपनी कहानी सुना रहा हूँ, मैं तुम्हारी कहानी सुन रहा हूँ और दुसरे पक्ष पर भी वही हो रहा है कि मैं तुम्हारी कहानी सुन रहा हूँ, मैं अपनी कहानी सुना रहा हूँ।
संसार क्या है? संसार की सारी व्यवस्था क्या है? जिसको हम सभ्यता और संस्कृति कहते हैं, वो क्या है? समझियेगा वो ‘मैं’-पन को व्यवसथित रूप से कायम रखने का उपाय है।
शालीन तरीके से तुम्हारा अहंकार कायम रह सके, इसका उपाय है। सभ्यता कुछ नहीं है; सभ्यता अहंकार को बचाने की मन की व्यवस्था है।
‘सिविलाइज़ेशन’ कुछ भी और नहीं है; सिर्फ़ इंतजाम है अहंकार की रक्षा करने का; कि ऊपर-ऊपर हिंसा भी ना दिखाए दे। अहंकार क्या करता है? देखो, अहंकार हमेशा लड़ना चाहता है। अहंकार हमेशा ‘काँन्फ़िलक्ट’ में जीना चाहता है।
सभ्यता ऐसी व्यवस्था है जिसमें अहंकार कायम भी रहे और ऊपर-ऊपर वो ‘काँन्फ़िलक्ट’ दिखाई भी ना दे।
तुम अपना अहंकार कायम रख सकते हो लेकिन कुछ नियम-कायदों पर चलो ताकि सतह पर ये दिखाई ही ना दे कि हमसब आपस में लड़ रहे हैं। सतह पर ना दिखाई दे; हाँ, भीतर-भीतर लड़ रहे हैं। भीतर-भीतर लड़ाई चलेगी, उसकी अनुमति है, लड़ो! लेकिन सतह पर मत लड़ लेना।