सब समझ आता है, पर बदलता कुछ नहीं

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब सब पता चलता है, सब दिखता भी है कि सब ठीक नहीं चल रहा उसके बावजूद भी कुछ बदलता क्यों नहीं है?

आचार्य प्रशांत: आप जो बात बोल रहे हैं न, वो जीवन के मूल सिद्धांत के ख़िलाफ़ है। जीवेषणा समझते हैं क्या होती है? और जीने की इच्छा। कोई भी जीव अपना विरोधी नहीं होता। हम पैदा ही नहीं हुए हैं कष्ट झेलने के लिए, हालाँकि कष्ट हम झेलते खूब हैं। हम पैदा इस तरह से हुए हैं कि कष्ट झेलना पड़ेगा, लेकिन हमारे भीतर कोई है जो कष्ट झेलने को राज़ी नहीं होता है। इसीलिए समझाने वालों ने कहा कि आपका स्वभाव दु:ख नहीं है, आनंद है। आपका यथार्थ दु:ख है लेकिन आपका स्वभाव आनंद है। जीते हम दु:ख में हैं, लेकिन स्वभाव आनंद का है। अगर स्वभाव आनंद का नहीं होता तो दु:ख हमें बुरा ही नहीं लगता। दु:ख किसी को अच्छा लगता है? दु:ख बुरा लगता है यही इस बात का सबूत है कि हमारा स्वभाव आनंद है, है न? इसका मतलब ये है कि दु:ख बुरा लगता है और आप प्रश्न क्या कर रही हैं? कि, “नहीं, दु:ख तो बहुत है पर करें क्या?” अरे भाई! अगर बुरा लग रहा है तो जो बताया जा रहा है वो करो न। या तो मेरी बात मान कर कुछ करो या अपने हिसाब से ही कोई तरकीब निकाल लो फिर कुछ करो, या किसी और की सुन लो और कुछ करो। पर कुछ तो करो क्योंकि दु:ख झेलना तुम्हारा स्वभाव नहीं है।

आप लोग बड़ी विचित्र बात बोल जाते हैं कि "नहीं, दु:ख तो है लेकिन कुछ करना नहीं चाहते उसके बारे में।" फिर छोड़िए, फिर इसका मतलब यह है कि दु:ख का अनुभव आपको हो ही नहीं रहा है, आप मुझे अपना दु:ख भर बता रहे हो, दु:ख के साथ-साथ आपने इतना बड़ा सुख पैदा कर रखा है, वह आप बड़ी होशियारी में छुपाए हुए हो। मिलते हैं न ऐसे लोग जहाँ तुम देखते हो कि व्यक्ति है, वो बड़ी दुर्दशा में है, हालत ख़राब है, रो भी रहा है, कलप भी रहा है, ज़िंदगी से पिट भी रहा है, लेकिन बदलने को राज़ी नहीं है। तो आपको ताज्जुब होता होगा कि, "बात क्या है? इस आदमी की हालत इतनी ख़राब है, यह बदलता क्यों नहीं, कुछ करता क्यों नहीं?"

आप धोखे में हो, आपको पूरी बात पता नहीं। आपको बस उस आदमी के दु:ख दिखाई दे रहे हैं, हक़ीक़त यह है कि उसने दु:ख में खूब सारा छुपा रखा है सुख। दु:ख वो प्रदर्शित कर देता है सार्वजनिक तौर पर, सुख वो चुपचाप रसास्वादन करता रहता है, एकांत में, मज़े लेता रहता है। इसलिए दु:ख नहीं छोड़ रहा क्योंकि दु:ख के साथ उसे खूब सारा सुख मिला हुआ है। आप कहोगे, "ये कौन सा सुख है साहब?" आपको पता ही नहीं फिर। मनहूसियत भरा जीवन बिताने में जो सुख है, किसी मनहूस से पूछो। बीमार बने रहने में जो सुख है, वह किसी बीमार से पूछो। ज़िंदगी के प्रति शिकायतों से भरे रहने में जो सुख है, वह किसी शिकायत करने वाले से पूछो। अपने-आपको दुर्बल और लाचार और शोषित बताने में जो सुख है, वह किसी शोषित से पूछो, किसी दुर्बल से पूछो।

और इन सब सुखों को हम सब ने चखा है, चखा है कि नहीं चखा है? बीमारी के मज़े कुछ होते हैं कि नहीं होते हैं…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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