सब महापुरुष कभी तुम्हारी तरह साधारण ही थे

हम बदलना नहीं चाहते, इसके लिए हम तरीके-तरीके के उपाय करते हैं। एक उपाय ये है कि जो कोई हमसे आगे हो, उसको घोषित कर दो — ‘महापुरुष’, और फिर बोल दो, “वो तो महापुरुष हैं, मैं तो छोटा आदमी हूँ, तो मैं उनके जैसा जीवन थोड़े ही जी सकता हूँ।”

हम एक सुविधाजनक विभाजन करते हैं: साधारण लोग और असाधारण लोग। और जो साधारण है, उसका काम है साधारण ही रह जाना। और जो असाधारण है, “उसको तो भाई दैवीय भेंट मिली हुई थी। वो तो जन्म से ही अद्वितीय था। उसपर तो ईश्वरीय अनुकम्पा थी।” किसी पर कोई ईश्वरीय अनुकम्पा नहीं होती। सब अपना रास्ता चलते हैं, तय करते हैं।

कोई नहीं होता सुपर ह्यूमन भाई! सब साधारण मिट्टी के ही बने होते हैं। सबने एक-सा ही जन्म लिया है। और अगर सबने एक-सा ही जन्म लिया है तो जो ऊँचाई किसी कृष्ण, किसी बुद्ध को मिलती है, वो आपको भी मिलनी चाहिए। वो आपकी ज़िम्मेदारी है। आपको अगर नहीं मिली, तो ये कहकर अपना बचाव मत करिएगा, कि, “कृष्ण तो ख़ास थे न! वो तो विष्णु के अवतार हैं। हम थोड़े ही विष्णु का अवतार हैं।” कोई नहीं होता विष्णु का अवतार! या ये कह लीजिए कि विष्णु के अवतार सब ही होते हैं। पर भेद मत करिए। या तो ये कहिएगा कि कोई विशिष्ट व्यक्ति विष्णु का अवतार नहीं होता, या फिर ये मानिए कि एक-एक प्राणी विष्णु का अवतार ही है, और सबमें विष्णु का अंश मौजूद है। बाकी ये तो अपनी ज़िम्मेदारी है, और अपनी नियत, और अपना इरादा है कि हम अपने भीतर के विष्णुत्व को साकार करते हैं कि नहीं, प्रकट होने देते हैं कि नहीं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org