सब इन्सान अलग-अलग क्यों? पुनर्जन्म क्या?

प्रश्नकर्ता: कोई जन्म से ही सात्विक विचारों वाला होता है, कोई जन्म से ही राक्षसी विचारों वाला होता है और कोई जन्म से अंधा और कोई जन्म से अपाहिज भी होता है। यह इतना भेद क्यों होता है? आत्मा तो एक है फिर यह इतना भेद क्यों?

आचार्य प्रशांत: यह भेद इसलिए है क्योंकि आप अपने सामने वाले से भी अलग हो और पीछे वाले से भी अलग हो। आप अपने आपको अलग कैसे कहोगे अगर आपके सब गुण, रूप, रंग, आकार, प्रकार आगे वाले जैसे ही हों या पीछे वाले जैसे ही हों। जीव तभी तक जीव है जब तक वह अन्य जीवों से भिन्न है और भिन्न होने के हज़ारों तरीके हैं तो उनमें से एक तरीका यह भी है कि किसी की बुद्धि कम होगी किसी की ज़्यादा होगी। किसी की आँखें नीली होंगी, किसी की आँखें काली होंगी। भिन्न होने का एक तरीका यह भी है कि हो सकता है कोई अपंग पैदा हो।

भिन्नता प्रकृति के विधान में है। जितने तरीकों से भिन्न हुआ जा सकता है उतने तरीकों से तुम्हें भिन्नता मिलेगी। जितने तरीकों से भिन्नता संभव है उतने तरीकों से भिन्नता होकर रहेगी क्योंकि यही प्रकृति का विधान है और इसी कारण तुम जीव हो। भिन्नता ना होती तो तुम भी नहीं होते। तुम दूसरों से अलग हो तभी तो कह पाते हो "मेरा नाम राजेश है", राजेश माने कौन? जो ना रमेश है ना सुरेश है। राजेश माने कौन? जो रमेश भी नहीं है और जो सुरेश भी नहीं है। माने वह इससे भी भिन्न है और उससे भी भिन्न है। अब अगर भिन्न होना है तो और कैसे भिन्न होओगे? रंग अलग होगा, रूप अलग होगा, आकार-प्रकार अलग होगा, देह अलग होगी, वैसे ही भिन्नता में फिर यह भी आ जाती है कि कोई सात्विक वृत्ति के साथ पैदा होता है, कोई तामसिक के साथ पैदा हो जाता है।

प्रकृति में कितने रंग देखने को मिलते हैं? कितने? गिनो, प्रकृति में कितने रंग हैं?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org