सबसे बड़ा दुश्मन, सबसे बड़ा दोस्त

आचार्य प्रशांत: कोई भी सच्ची प्रार्थना सदा स्वयं से ही की जाती है। प्रार्थना अगर सच्ची है तो वह स्वयं से ही की जा रही है क्योंकि हमें बनाने या बिगाड़ने वाला है कौन? हम ही हैं न। कहते हैं उपनिषद कि तुमसे बड़ा तुम्हारा कोई मित्र नहीं और तुमसे ही बड़ा तुम्हारा कोई ऋपु नहीं।

अमृतबिन्दु उपनिषद याद है? तुमसे बड़ा तुम्हारा कोई हितैषी नहीं और तुमसे बड़ा तुम्हारा कोई शत्रु नहीं। तो तुम्हारी ज़िंदगी बनेगी या बिगड़ेगी ये निर्भर किसपर करता है? तुमपर। तो तुम्हारी ज़िंदगी को नियंत्रित करने वाला फिर कौन है? तुम हो। अरे! ये तो तुम फँस गए। कोई है जो तुम्हारी ज़िंदगी पर शासन रखता है, नियंत्रण,

वो कौन है?

और तुम्हारी ज़िंदगी चल रही है गड़बड़। जीवन में तमाम तरह के दुख हैं, क्लेश हैं, व्याधियाँ। तो प्रार्थना तो करनी पड़ेगी क्योंकि जीवन ठीक नहीं चल रहा है। तो प्रार्थना उसी से करोगे न जो तुम्हारे जीवन के सब निर्णय करता है और नियंत्रण रखता है। कौन है वो? वो तो तुम ही हो। तो प्रार्थना हमेशा स्वयं से ही करी जाती है और किससे प्रार्थना करोगे?

प्रार्थना करके तुम स्वयं को याद दिला रहे होते हो कि तुम कितने दुख में हो। प्रार्थना करके तुम स्वयं को याद दिला रहे होते हो कि तुम कितने ज़्यादा ग़ैर भरोसेमंद हो। प्रार्थना करके तुम स्वयं को याद दिला रहे होते हो कि तुम कितने मूर्ख हो। यही तो कह रहे होते हो न, मैं अपना बूरा न करूँ।

हम जब यहाँ बोधस्थल में प्रार्थना करते भी हैं तो क्या बोलते हैं? हे राम! मुझे मुझसे बचा। कह तो रहे हैं, हे राम पर…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org