सबकुछ भगवान कर रहा है, या कोई और?
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब हम ये बात करते हैं कि बेड़ियाँ काटनी हैं या पुराने ढर्रों से बाहर निकलना है। तो जैसा कि आपने गीता के सत्र में कहा था कि जब कृष्ण कहते हैं कि, “या तो मेरी सुन ले या मेरी माया की सुन ले।” तो हमें ऐसा कर्म करना चाहिए जो हमारे बंधनों को काटे। तो मेरा सवाल ये है कि क्या हमारे पास वो इंडिपेंडेंट चॉइस (स्वतंत्र विकल्प) है भी वो कि वो कर्म करें जो वो बंधन काटे, क्योंकि अल्टीमेटली (अंततः) करवा तो कृष्ण ही रहे हैं न?
आचार्य प्रशांत: तो फिर ये सवाल पूछना ही बेकार है। क्यों पूछ रहे हो अगर तुम्हारे पास चॉइस (विकल्प) ही नहीं है तो? जिसके पास चॉइस ही ना हो वो कौन हुआ?
वो ये हुआ ये (चाय के कप को दिखाते हुए)। मैंने उठाया तो उठ गया, मैंने गिराया तो गिर गया। इसके पास अपनी कोई चॉइस, कोई सत्ता, कोई विकल्प, कोई एजेंसी नहीं है। ये (कप) सवाल पूछे तो मैं जवाब दूँ? तो मैं क्यों जवाब दूँ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि विकल्प है, पर विकल्प का खतरा ना उठाना पड़े इसलिए हम ऐसा स्वांग करना चाहते हैं कि “मैं क्या करूँ, मेरे पास तो चॉइस है ही नहीं?”
वही! “मैं क्या करती देवदास, मैं मजबूर थी, मेरे पास चॉइस नहीं थी देवदास।”
काहे ‘पारो’ (देवदास फ़िल्म की नायिका) बन रहे हो?
प्र: आचार्य जी, जैसा मेरा इस सत्र का आना, या जो भी मैं कर्म कर रहा हूँ, तो मैं ये पूछना चाहता था कि मतलब ऐसा कोई करवा रहा है या ये मेरी स्वतंत्र इच्छा है?
आचार्य: कोई नहीं करवा रहा। ये बात एकदम दिमाग से निकाल दो कि ये काम तुमसे परमात्मा करवा रहे हैं, या कृष्ण करवा रहे हैं।
(परमात्मा) अकर्ता हैं। अकर्ता! अकर्ता! अकर्ता!
जो कुछ हो रहा है तुम कर रहे हो।
ये (जगत) प्रपंच है सारा, माया का पसार। और इसके सूत्रधार तुम मात्र हो, कोई और नहीं।
अच्छा कर रहे हो, तुम कर रहे हो, किसके लिए अच्छा कर रहे हो?
श्रोतागण: खुद के लिए।
आचार्य: बुरा कर रहे हो, तुम कर रहे हो, किसके लिए बुरा कर रहे हो?
श्रोतागण: खुद के लिए।
आचार्य: सत्य में तो तुम हो ही नहीं, तो किसके लिए अच्छा, किसके लिए बुरा करोगे पागल? सत्य में तो कौन है? सत्य भर है, किसी दूसरे की सत्ता ही नहीं। पर तुम्हारे लिए तुम्हारी सत्ता है न? तो तुम जब बोलते हो “मैं थोड़े ही कर रहा हूँ, मुझसे वो करवा रहे हैं” तो बात वहीं पर गलत हो जाती है।