सबकुछ भगवान कर रहा है, या कोई और?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब हम ये बात करते हैं कि बेड़ियाँ काटनी हैं या पुराने ढर्रों से बाहर निकलना है। तो जैसा कि आपने गीता के सत्र में कहा था कि जब कृष्ण कहते हैं कि, “या तो मेरी सुन ले या मेरी माया की सुन ले।” तो हमें ऐसा कर्म करना चाहिए जो हमारे बंधनों को काटे। तो मेरा सवाल ये है कि क्या हमारे पास वो इंडिपेंडेंट चॉइस (स्वतंत्र विकल्प) है भी वो कि वो कर्म करें जो वो बंधन काटे, क्योंकि अल्टीमेटली (अंततः) करवा तो कृष्ण ही रहे हैं…

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रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

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