सपनों में गुरुदर्शन का क्या महत्व है?

इससे यही पता चलता है कि मन सीखने को तैयार हो रहा है। मन इतना तो मान ही रहा है कि गुरु की सत्ता होती है, मन ने इस बात को गहराई से स्वीकृति दे दी है कि गुरु जैसा कुछ होता है।

ये तो बहुत ही दूर की बात है कि गुरु के कहे को समझ लिया, या गुरु के समक्ष नतमस्तक हो गये। ये तो बहुत-बहुत आगे की बात है।

मन के लिये इतना भी आसान नहीं होता कि वो मान ले कि मन के आगे, मन से बड़ा, मन के अतीत, मन के परे भी कुछ होता है।

मन की पूरी ज़िद यही मानने की रहती है, इसी दुराग्रह की रहती है कि — “जो है सब मेरी सीमाओं के भीतर है, जो है उसका मुझे अगर अभी पता नहीं भी है, तो कल पता लग जाएगा। मैं जैसा हूँ, वैसा रहते हुए भी कल मुझे, जो आज अज्ञात है, कल ज्ञात हो जाएगा। तो मुझे किसी के सामने झुकने की ज़रुरत नहीं। कुछ मुझे पता है, स्वयं ही पता है, अनुभवों से पता है, और जो मुझे पता नहीं वो मुझे कल के अनुभवों से पता चल जाएगा,” — ऐसा मन का आग्रह होता है। ये मन की ज़िद होती है।

तो आधे से ज़्यादा काम तो तभी हो गया जब मन ने गुरु की सत्ता को स्वीकार कर लिया, कि — गुरु है। झुका तो सही। ये माना तो सही कि मन से बड़ा कुछ है, स्वयं से बड़ा कुछ है। इतना मानने के बाद आगे का काम यूँ भी आसान ही है, और ये नहीं माना तो आगे का काम फ़िर शुरु ही नहीं होगा।

सपनों में अगर गुरु की छवि आ रही है — ये शुभ संकेत है।

और, और भी अच्छा है अगर तुम्हें समझ नहीं आ रहा कि सपनों में जो गुरु की छवि आती है वो तुमसे कहती क्या है। भली बात।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org