सन्यास- मूर्खता का प्रतिरोध

नारि पुरुष की इसतरी, पुरुष नारि का पूत।
याही ज्ञान विचारि के, छाडि चले अवधूत।।

~ संत कबीर

आचार्य प्रशांत: अवधूत शब्द ही गहरा है; अव-धूत: जिसके मन से धूल, धुंआ पूरी तरह साफ़ हो गया, वो अवधूत। क्या दिखता है अवधूत को अपने साफ़ मन से?

जगत, जो हमारी इन्द्रियों से प्रतीत होता है, वो मात्र पदार्थ है। कुछ भी ऐसा नहीं है जगत में, जिसे आँखों से देखा न जा सकता हो या हाथों से छुआ न जा सकता हो, कानों से सुना न जा सकता हो या कम से कम जिसका विचार न किया सकता हो। यदि कुछ है, यदि कुछ ऐसा है, जिसको आप अस्तित्वमान मानते हैं, तो निश्चित रूप से या तो दृश्य होगा, या तो ध्वनि होगी, या स्पर्श किया जा सकेगा या विचार का विषय होगा अन्यथा वो है ही नहीं, अन्यथा उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है।

जगत पदार्थ है; जगत में जो कुछ भी है, सब कुछ पदार्थ है — बात को गहरे घुस जाने दीजिए — जगत में जो है, सब पदार्थ है। जिसे हम मनुष्य देह कहते हैं पदार्थ है, और जगत का हर रिश्ता देह का ही रिश्ता है, पदार्थ का ही रिश्ता है। देह का हर रिश्ता जगत का रिश्ता है, एक मात्र रिश्ता जो जगत में है, वो पुरुष और स्त्री का है; वो देह के तल पर है।

कैसा है वो देह का रिश्ता? वो देह का रिश्ता है, ऐसा है जिसमें क्यूंकि पदार्थ पदार्थ से मिल रहा है, इसलिए चेतना की कोई गुंजाईश नहीं है। जगत, याद रखिये अपने आप में चैतन्य नहीं है, इसीलिए जो मूल रिश्ता है जगत का, वो भी अपनेआप में चैतन्य नहीं है और आप देखिएगा बाकि जितने रिश्ते होते हैं उन सब के मूल में तो स्त्री-पुरुष का ही रिश्ता है, सबसे पहले वही आता है। सब उसकी शाखाओं और पत्तियों की तरह फिर बाद में आते हैं।

पदार्थ से पदार्थ का रिश्ता कुछ ऐसा है जैसे लोहे और चुम्बक का रिश्ता, कि आकर्षण तो है पर न लोहे को पता है कि वो खींच रहा है, न चुम्बक को पता है कि वो क्यों खिंचा चला आ रहा है। जैसा दो रसायनों का रिश्ता, जो जब आपस में मिलते हैं तो उनमें आपस में प्रतिक्रिया होती है, इनके अणु-परमाणु संयुक्त हो जाते हैं, पदार्थ से पदार्थ मिलता है तो एक नया रसायन ही पैदा हो जाता है। पर जो दो रसायन मिल रहें हैं, दोनों रसायनों में से कोई नहीं जानता कि ये घटना क्या घट रही है? हो बहुत कुछ जाता है। मूलतः स्त्री और पुरुष का रिश्ता ऐसा ही है। दो पदार्थ आपस में क्रिया इसीलिए करते हैं क्योंकि दोनों में कुछ मूल अपूर्णता होती है, अपूर्णता न हो तो कोई रिएक्शन होगा ही नहीं।

पुरुष की अपूर्णता है कि उसके अहंकार को ‘जीतना’ है। स्त्री की अपूर्णता है कि उसके अहंकार को कब्ज़ा करके बैठना है। पुरुष का अहंकार उस राजा की तरह है, जो कभी अपनी राजधानी में पाया नहीं…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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