सनातन धर्म स्त्रियों का शोषण करता है?
आचार्य प्रशांत: प्रश्न आया है, प्रश्न क्या है व्यंग आया है और प्रश्नकर्ता माने व्यंगकर्ता कहते हैं कि बहुत बढ़िया है सनातन धर्म और ऐसे सनातन धर्म को कोटि-कोटि प्रणाम जिसमें जब स्त्रियों और पुरुषों की समानता की बात करनी हो तो उपनिषदों की आड़ ले लो और जब स्त्रियों को दबाना हो, शोषण करना हो, तो पुराणों का सहारा ले लो। प्रश्नकर्ता कह रहें हैं कि सनातनधर्मी दो तरफ़ा चाल चलते हैं, जब उनको स्थापित करना होता है कि सनातन धर्म में, जिसको हम साधारणतया हिन्दू धर्म बोलते हैं, कोई लिंगभेद या वर्णभेद या जातिभेद नहीं मान्य है तो वो उपनिषदों को उद्धृत करने लग जाते हैं, वो कहते हैं देखो, “विशुद्ध वेदांत की ओर जाओ और वहाँ किसी तरह के, किसी भेदभाव को मान्यता नहीं है।” और दूसरी ओर जब आचरण की बात आती है, रोज़मर्रा की जिंदगी की बात आती है, तो स्त्रियों का शोषण होता है और इसी तर्क में मैं जोड़े देता हूँ कि दलितों का शोषण होता है, तमाम तरीके के पिछड़े वर्गों और वर्णों का शोषण होता है और उनका शोषण करने के लिए पुराणों का और स्मृतियों का सहारा ले लिया जाता है। तो बड़ा व्यंग करा है। समझेंगे थोड़ा-सा बात को!
देखो, बहुत पुरानी एक परम्परा है जिसको हम सनातन कहते हैं, और जो चीज़ जितनी पुरानी होती है उसका उद्गम हमसे उतना दूर होता चला जाता है, है न? कोई चीज़ कल-परसों की हो तो हमें बिल्कुल साफ दिखाई देगा कि वो कहाँ से शुरू हुई और कैसे आगे बढ़ी और कोई चीज़ हो अगर चार हज़ार साल पुरानी, पाँच हज़ार साल पुरानी, तो वो कैसे शुरू हुई थी, कैसे आगे बढ़ी थी, बीच में उसमें से क्या शाखा-प्रशाखा निकलती गईं, क्या उसमें से धाराएँ फूटती…