सनातन धर्म के सामने सबसे बड़ा खतरा क्या?

प्रश्नकर्ता: सनातन धर्म जिसे हम हिंदू धर्म भी कह देते हैं, उसके सामने सबसे बड़ा खतरा क्या है?

आचार्य प्रशांत: देखो, व्यावहारिक रूप से, धर्म की बुनियाद होते हैं धर्मग्रंथ। आदर्श रूप से पूछोगे तो धर्म की बुनियाद होती है — आत्मा। धर्म का मतलब होता है आत्मा के अनुसार चलना और आत्मा की ही तरफ चलना। आत्मा की पुकार पर चलना, आत्मा के कहे पर चलना और आत्मा की तरफ को ही चलना। पर वो आदर्शवाद है, आदर्शवाद क्यों है? क्योंकि मन को अगर आत्मा का पता ही होता तो उसे धर्म की फिर ज़रूरत क्यों पड़ती?

मन बहका हुआ है, मन आत्मा से दूर है तभी तो उसे धर्म चाहिए ना ताकि वो आत्मा — आत्मा माने सत्य, आत्मा माने शांति — ताकि वो आत्मा की तरफ जा सके। इसीलिए तो मन को धर्म की ज़रूरत है। इसीलिए धर्म के केंद्र पर होते हैं धर्म के जो सर्वोच्च ग्रंथ हैं वो। वो बताते हैं कि कैसे जीना है, जीवन किसका है, जीव की सच्चाई क्या है, मन किसको कहते है, विचार क्या है, भावनाएँ क्या हैं, सम्बंध क्या हैं। ये बताना काम है धर्मग्रंथों का और धर्म के केंद्र पर धर्मग्रंथ बैठे हैं, ठीक है?

तो जब तक किसी भी धर्म के अनुयायियों में अपने ग्रंथों के प्रति सम्मान रहेगा, झुकाव रहेगा और धर्मग्रंथों का ज्ञान रहेगा तब तक धर्म को खतरा नहीं हो सकता। अभी हालत बहुत गड़बड़ हो गयी है। बड़ी चिंता की बात है। मैं उपनिषदों पर दिनरात बोलता हूँ। हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हमारे कोर्स चलते हैं और उनके बारे में जब भी कोई सूचना बाहर जाती है या सत्रों से कोई उक्ति, कोई उद्धरण कहीं प्रकाशित होता है तो लोग पूछते हैं ये उपनिषद क्या हैं, हम इन्हें कहाँ से पढ़ सकते हैं, कहाँ से खरीदें?

जिसको तुम आम हिंदू बोलते हो उसका अपने धर्म की केंद्रीय किताबों से कोई संबंध ही नहीं रह गया है और यही इस समय धर्म के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

आपको अगर झूठमूठ के उग्र नारे लगाने हैं धर्म की रक्षा के लिए, तो आप कह सकते हैं कि आपके धर्म को किसी दूसरे धर्म से बहुत ज़्यादा खतरा है। सनातन धर्म में हिंदू धर्म को किसी दूसरे धर्म से बाद में होगा खतरा, पहला खतरा उसे हिन्दुओं से ही है। क्योंकि जिसको आप हिंदू बोलते हो वो नाम का हिंदू है। उससे पूछो, “तू कैसे है हिंदू?” तो उसके पास बस एक बात होगी बोलने के लिए, “मेरे माँ-बाप हिंदू हैं तो मैं भी हिंदू हूँ।” बोलें, “हिंदू होने का मतलब क्या है?” तो वो बोलेगा, “होली-दिवाली मना लेना, राखी बाँध लेना ये हिंदू होने का मतलब है।”

बोलो, “भई! धर्म है, धर्म के पीछे दर्शन होता है, कोई बात होती है, कोई जीवन दृष्टि होती है, वो क्या है तेरी? जिसको तू हिंदू धर्म बोलता है उसकी दृष्टि क्या है, दर्शन क्या है?” तो वो नहीं बता…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant