सत्य से सदा बचने की दौड़
आचार्य प्रशांत: मन सुख की कामना और भोग की इच्छा से ही घिरा रहता है। मन के लिए भोग और वासना, सत्य और प्रेम के स्थानापन्न हो जाते हैं। मन, सत्य और प्रेम का अस्वीकार करता है। कोई चीज़ आपके समक्ष भी हो, तो भी आप उसका अस्वीकार कर सकते हैं। किसी चीज़ को अस्वीकार करने में तो कोई विशेष बात नहीं है ना।
कुछ प्रत्यक्ष हो सकता है, तब भी आप उसके होने से इनकार कर सकते हो। तो सुख अपने आप में इतना रमा रहता है, प्रियत्व, प्रिय होने की…