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सत्य किसको चुनता है
वक्ता: नानक कई बार कहते हैं कि वो जिसको चुनता है उसी पर अनुकम्पा होती है। तो सवाल है कि वो किसको चुनता है। हम इसपर कई बार बात कर चुके हैं।
वो किसको चुनता है?
श्रोतागण: जो उसी की तरफ़ जाता है। जो उसको चुनता है।
वक्ता: हाँ। ज़्यादा अच्छा यह है ‘जो उसको चुनता है’। चुनने का काम उस तरफ़ से नहीं होता। इस बात को हम कई बार दोहरा चुके हैं। तो अच्छे से पकड़ लो न। वो नहीं चुनता किसी को। हाँ! तुम जो चुनाव करते हो, उस चुनाव की ताकत भी तुम्हें उससे मिली है। पर उसकी अपनी कोई रुची नहीं है चुनने में। उसने तुम्हें दे दिया है ‘लो, यह चुनने-चुनाने का सारा काम तुम करो। हमारी ओर से जो है वो तो पूरा है। हम अकर्ता हैं, हमें कुछ करना नहीं। कर्ताभाव तुम्हें मुबारक हो। हम परम कर्ता होते हुए भी अकर्ता हैं। बाकी सब यह निर्णय लेना, इधर जाना, उधर जाना, क्या करना है, इसे स्वीकार करना, उसे अस्वीकार करना; तुम करो, हम नहीं करते। तुम चुनो। ताकत तुम्हारे हाथ में है।’
हमने बात करी हुई है न कि ‘द फ्रीडम टू बी इज़ ऑल योर्स’ (होने की आज़ादी तुम्हारी है)। तुम्हें निर्णय लेना है। वो निर्णय नहीं लेगा।
श्रोता २: तो फ़िर ग्रेस (अनुकम्पा) कुछ नहीं होता?
वक्ता: अभी जो पूरी बात बोली उसमें ग्रेस कहाँ है? कहाँ है ग्रेस?
श्रोता ३: चुनने की क्षमता ही ग्रेस है।
वक्ता: सुना तो करो न पहले। तुम्हें चुनने की ताकत मिली है, यह तुम्हारी अपनी कमाई हुई है? तुम्हें चेतना जो है, जो समझती है, जो जान…