सत्य और प्रेमिका में से किसे चुनूँ?

प्रश्नकर्ता: मेरे अन्दर एक डर है कि या तो मेरे लिए प्रशंता अद्वैत संस्था है या गर्लफ्रेंड है। अगर मैं शादी के रास्ते पर निकल रहा हूँ तो फिर मैं इस संस्था से हटूंगा, इसका बहुत डर है। और दूसरी ओर निकल रहा हूँ, तो ज़ाहिर सी बात है कि गर्लफ्रेंड आने नहीं वाली।

प्रश्नकर्ता १: जब तुम दिन अपना बिताते हो, तुम्हें जो-जो लगता है वो करते हो, तो क्या सोच-सोच के करते हो? जैसे भूख़ लगती है, खाना खाया। तो क्या सोच के खाते हो कि अब मुझे खाना चाहिए या नहीं खाना चाहिए? भूख़ लगी तो…खाना खाते हो। तो चाहे प्रशांत अद्वैत संस्था में जाना हो, या गर्लफ्रेंड के पास जाना हो, या अपने किसी दूसरी इच्छा की पूर्ति करनी हो, तीनों बातें फिर एक जैसी नहीं हो गई? तीनों में एक सामान्य क्या नज़र आ रहा है?

प्रश्नकर्ता २: तीनों के बारे में बस सोच रहा हूँ।

प्रश्नकर्ता १: तीनों के बारे में सोच रहे हो क्योंकि अगर सोचे नहीं, तो जिसको कहते हैं कि प्रेम है किसी के साथ। तो तुम्हें अगर कोई रोकेगा भी अगर प्रशांत अद्वैत संस्था में जाने से, तो तुम रुक नहीं पाओगे। गर्लफ्रेंड से भी अगर तुम्हारी लड़ाईयां होती हैं, तो तुम्हें कोई हटाए भी, तुम खुद भी हटना चाहो तो होता नहीं है। तो कहीं पर देख रहे हो कि गलती हो रही है। कहाँ पर कुछ बैठा हुआ है, जो सारी चीजों में एक जैसा ही व्यवहार करवा रही है?

प्रश्नकर्ता: अभी लगा ऐसा!

आचार्य प्रशांत: बेटा, जो प्यार जानेगा वो काम से भी प्यार करेगा। वो किसी व्यक्ति से, किसी लड़की से भी प्यार जानेगा। वो दुनिया से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org