सत्यत्वबुद्धि, अहंबुद्धि और ममबुद्धि

पदार्थ में सत्यत्वबुद्धि का मतलब होता है कि तुमने पदार्थ को देखा और कहा ये है, मैं होऊँ न होऊँ ये है। उसका होना तुमने अपने आप में पूर्ण घटना मान ली, एक अद्वैत घटना मान ली, एक अनाश्रित घटना मान ली, जबकि पदार्थ अपने आप में सत्य नहीं है क्योंकि पदार्थ का होना आश्रित है, तुम्हारे देखने पर, तुम्हारी स्मृति पर, तुम्हारे अनुभव पर, पदार्थ का होना सत्यापित ही तुम करते हो, तुम न हो तो कौन आएगा सत्यापित करने पदार्थ को? तुम कहोगे मैं न हूँ तो कोई और आ जाएगा, लेकिन सबका आख़िरी प्रमाण तुम ही हो तो इसलिए पदार्थ में सत्यत्वबुद्धि रखना दोष माना गया है।

ये जो हमारी चेतना है, इसको किसी की इतनी तलाश है कि उसने उसको तलाशने के लिए इतना बड़ा ब्रह्माण्ड खड़ा कर दिया? ये सारी दुनिया हमने ही तैयार करी है, हम कुछ चाह रहे हैं, हम कुछ ख़ोज रहे हैं इसीलिए हमें चारों ओर दुनिया ही दुनिया दिखाई देती है, तुम्हें वो मिल जाए जो तुम चाहते हो, तुम्हें दुनिया दिखाई देनी बंद हो जाएगी। ये हुई सत्यत्व बुद्धि।

अहंबुद्धि का मतलब हुआ, मैं हूँ। पदार्थ में सत्यत्व बुद्धि का मतलब हुआ वो (पदार्थ) है, अहंबुद्धि का मतलब हुआ मैं हूँ, तो पदार्थ में चाहे तुम सत्यत्व बुद्धि रखो या चाहे अपने प्रति तुम अहंबुद्धि रखो, बात एक ही है, तुमने द्वैत का पहले एक सिरा पकड़ा, अब दूसरा पकड़ लिया, तुम कह रहे हो तुम तो हो ही और तुम हो ही नहीं सकते जब तक दुनिया नहीं है।

ममबुद्धि का मतलब, मेरा है। हो ही नहीं सकता कि अहंबुद्धि हो और ममबुद्धि न हो, इसलिए हमेशा अहंता के साथ, हमेशा ममता को जोड़ के बताया जाता है, अहम् हो और मम न हो, ये कर ही नहीं पाओगे क्योंकि मैं अकेला जी ही…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org