सतनाम का क्या महत्व है?

सतनाम का क्या महत्व है?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सतनाम को याद करने का क्या मतलब है?

आचार्य प्रशांत: जिसका कोई नाम नहीं हो सकता, उसको याद करते रहने को कहते हैं ‘सतनाम को याद करना’।

सन्तों ने नाम सुमिरने पर बहुत ज़ोर दिया है। वो कोई विशेष नाम नहीं है, किसी ख़ास नाम की बात नहीं कर रहे हैं वो; वो अनाम के नाम की बात कर रहे हैं।

किसी का नाम ‘नाम’ सुना है? किसी से पूछो, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’ तो वो बोले, ‘नाम।’ तो फिर सन्त ये क्यों कहते हैं कि नाम याद रखो? भाई, जिसका नाम है, यही बता दो न। जिसका नाम है बता दो वो कौन है, तो उसका नाम याद रखें। बार-बार कहते हैं, ‘नाम याद रखना’ और नाम क्या है, ये बताते ही नहीं। ये तो अजीब बात है।

ये ऐसी सी बात है कि मैं कहूँ, ‘याद रखिएगा।’

वो पूछे, ‘क्या?’

‘याद रखिएगा।’

यही है, सूत्र यही है ‘याद रखो’।

पूछे, ‘क्या?’

वो नहीं बताने की बात है। ‘बस याद रखो’, यही सुमिरन है।

‘क्या?’

‘याद रखना।’

‘क्या याद रखना है?’

‘कुछ नहीं, बस याद रखना।’ यही है ‘नाम सुमिरना’।

‘आओ!’

‘कहाँ?’

‘बेकार की बात मत करो, आओ।’

‘कहाँ?’

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org