सच नहीं है, न झूठ ही है
10 min readJan 16, 2021
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येन विश्वमिदं दृष्टं स नास्तीति करोतु वै।
निर्वासनः किं कुरुते पश्यन्नपि न पश्यति॥१५॥
अनुवाद: जिसने इस विश्व को कभी यथार्थ देखा हो, वह कहा करें कि नहीं है, नहीं है,
जिसे विषय वासना ही नहीं है, वह क्या करें? वह तो देखता हुआ भी नहीं देखता।
~ अष्टावक्र गीता ( अध्याय — १८, श्लोक — १९)