सच नहीं है, न झूठ ही है

येन विश्वमिदं दृष्टं स नास्तीति करोतु वै।

निर्वासनः किं कुरुते पश्यन्नपि न पश्यति॥१५॥

अनुवाद: जिसने इस विश्व को कभी यथार्थ देखा हो, वह कहा करें कि नहीं है, नहीं है,

जिसे विषय वासना ही नहीं है, वह क्या करें? वह तो देखता हुआ भी नहीं देखता।

~ अष्टावक्र गीता ( अध्याय — १८, श्लोक — १९)

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org