सच क्या कभी तुम्हें भाएगा?
बाहर-बाहर से, दूर-दूर से, कई बार तुम्हें आकर्षक लग सकता है मेरे जैसा होना, पर जब यात्रा शुरू करो तो अनुभव कटु भी हो सकता है। दूर से इतना ही दिखाई देता है कि सर कुछ कहते हैं, लिखते हैं; लोग सवाल पूछते हैं, जवाब देते हैं, बड़ा मज़ा आता है लोग सुनते हैं। उसमें आदर-सम्मान है, मन को ये बातें भाती हैं, खींचती है। वियोग की दशा है ही ऐसी, वहाँ मन प्यासा है। किसका प्यासा है? उसे पता भी नहीं, तो उसे लगता है कि वो शायद आदर और सम्मान का ही प्यासा है। पर…