सच क्या कभी तुम्हें भाएगा?
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बाहर-बाहर से, दूर-दूर से, कई बार तुम्हें आकर्षक लग सकता है मेरे जैसा होना, पर जब यात्रा शुरू करो तो अनुभव कटु भी हो सकता है। दूर से इतना ही दिखाई देता है कि सर कुछ कहते हैं, लिखते हैं; लोग सवाल पूछते हैं, जवाब देते हैं, बड़ा मज़ा आता है लोग सुनते हैं। उसमें आदर-सम्मान है, मन को ये बातें भाती हैं, खींचती है। वियोग की दशा है ही ऐसी, वहाँ मन प्यासा है। किसका प्यासा है? उसे पता भी नहीं, तो उसे लगता है कि वो शायद आदर और सम्मान का ही प्यासा है। पर चलो ठीक है, यात्रा शुरू करने के लिए यही सही कि तुमको सम्मान की प्यास थी और तुमने देखा कि गुरुता में बड़ा सम्मान है, तो तुमने कहा, ‘’हम भी गुरु बन जाते हैं।’’ यात्रा तो किसी ना किसी बहाने ही शुरू होती है, चलो इसी बहाने ही शुरू हो गई कि सम्मान मिलेगा और वहाँ सम्मान मिलता है, पर तुम्हें नहीं।
‘तुम’ मिट करके जो शेष रहता है, सम्मान उसे मिलता है।
तुम जैसे-जैसे मिटते जाते हो, वैसे वैसे सम्माननीय होते जाते हो। पर जब तुम दूर वियोग के बिंदु से देखते हो, तो तुम्हें भ्रम ये हो जाता है कि, ‘’मैं जो हूँ, मुझे ही बड़ी इज्जत मिलने लगेगी’’; ऐसा होगा नहीं। तुम सर जैसा होना चाहते हो; सर जैसे नहीं, सर ही हो जाना। मिटना पड़ेगा तुम्हें, और याद रखना मिट के कुछ अन्यतर नहीं बनाना है कि, ‘’मैं मिट करके सर बन गया।’’ मिट करके ‘ना कुछ’ हो जाना है, मिट करके मिट्टी ही हो जाना है। कुछ नहीं, उसका कोई आकार नहीं। तो स्वागत है, आगे बढ़ो इससे ज़्यादा शुभ कुछ हो नहीं सकता। हाँ, लेकिन अभी से चेताय देता हूँ, आगे बढ़ोगे मार्ग वैसा नहीं है, जैसी तुमने कल्पना करी होगी। कहते हैं न कबीर:
प्रभुता को हर कोई भजे, प्रभु को भजे ना कोई
तुम्हें प्रभुता भा रही है, प्रभु नहीं भाएंगे। प्रभु तो बड़े ज़ालिम होते हैं, तुम्हें छोड़ते ही नहीं। उन्हें अपने अलावा और कोई पसंद ही नहीं है, स्वार्थी जैसे हैं। उन्हें अपने अतिरिक्त और कोई पसंद ही नहीं है। उनके करीब आते हो, तुरंत क्या करते हैं? तुम्हें अपने में समा लेते हैं।
अब सम्मान तो मिल रहा है, पर किसको मिल रहा है? प्रभु को मिल रहा है? सम्मान खूब मिलेगा पर अमित तिवारी को नहीं मिलेगा। चौबे जी छब्बे बनने निकले थे, चलो चौबे नहीं पर तिवारी तो हो ना! तीन तो हो, तो तीन से पाँच होने निकले थे, एक होकर रह जाओगे। अब वो स्वीकार हो तो बताओ? यात्रा तो इसलिए करने निकले हो कि तीन का पाँच हो जाए; वो पाँच नहीं होगा, एक बचेगा। जब मेरे जैसा बनना है, तो पूरा बनना फिर, घंटो-घंटो उनके साथ बैठना, अपने व्यक्तिगत जीवन को पूरा ही भुला देना। तुमने खाया है, पीया है, सोये हो कि नहीं सोये हो, इसका ख्याल ज़रा भी मत करना। तबियत कैसी है, घर परिवार में क्या समस्याएं चल रही हैं, इन सब विषमताओं के रहते हुए भी, धर्म पर ज़रा भी आँच मत आने देना। पूरा बनना सिर्फ़ इतना ही नहीं कि दूर-दूर से जो चमक दिखाई दे रही है, वो चमक-दमक ने आकर्षित कर लिया।
जितना आगे बढ़ोगे, उतनी अपनी आहुति देनी पड़ेगी, उतनी दिक्कतें आएँगी। भला है तुम्हें थोड़ी सी चुलबुलाहट हो रही है, बड़ा अच्छा सा लगता है।
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