सच के निकट जाने का डर

मन को वैसे रहना चाहिए, जैसे चाँद दिन के समय रहता है।

चाँद दिन के समय कैसा है?

उसके पास अपनी रोशनी तो है, पर अभी वो बड़ा विनम्र है क्योंकि उसके सामने सूरज है। तुम्हारे पास अपनी रोशनी तो रहे पर तुम्हें लगातार ये याद बनी रहे कि तुम्हारी रोशनी ‘उसकी’ कृपा से है।

रात के चाँद को तो बड़ा गुरूर हो जाता है, भूलना नहीं कि जिसको तुम अपनी व्यक्तिगत संपत्ति या व्यक्तिगत सुख या व्यक्तिगत मकान या व्यक्तिगत संसार कहते हो, वो भी समष्टि की कृपा से ही है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org