सच एक है, पर व्यक्तियों के चुनाव अलग-अलग हैं!

सच एक है, पर व्यक्तियों के चुनाव अलग-अलग हैं!

आचार्य प्रशांत: परमहंस गीता, दूसरा अध्याय, तेरहवाँ श्लोक–

क्षेत्रज्ञा आत्मा पुरुषः पुराणः साक्षात्स्वयंज्योतिरजः परेशः। नारायणो भगवान् वासुदेवायः स्वमाययात्मन्यवधीयमानः।।

ये क्षेत्रज्ञ परमात्मा सर्वव्यापक, जगत का आदिकारण, परिपूर्ण, अपरोक्ष, स्वयंप्रकाश, अजन्मा, ब्रह्मादि का भी नियन्ता और अपने अधीन रहने वाली माया के द्वारा सबके अन्तःकरणों में रहकर जीवों को प्रेरित करने वाला समस्त भूतों का आश्रयरूप भगवान् वासुदेव है।

~ परमहंस गीता (अध्याय २, श्लोक १३)

तो कह रहे हैं, ‘नमन आचार्य जी। जब परमात्मा सभी जीवों के अन्तःकरण में विद्यमान हैं, प्रेरित करते हैं, तो यह प्रेरणा सभी मानवों में एक जैसी क्यों नहीं है? यदि प्रेरित करने वाले वासुदेव ही हैं, तो उसकी अभिव्यक्ति व दिशा में इतना अन्तर क्यों? क्या इसमें व्यक्ति के परिवेश की भी कोई भूमिका है? और जब सभी लोगों में एक ही प्रेरणा संचालित है, तो फिर संगति पर इतना ज़ोर क्यों दिया जाता है?’

अरे भाई! मूल प्रेरणा सभी के हृदय में एक ही है, पर जो प्रेरित हो रहे हैं, वो तो सब अलग-अलग हैं न? लाखों, करोड़ों भेद हैं उनमें, विषमताएँ हैं उनमें, विविधताएँ हैं। सत्य एक है; झूठ कितने हैं? झूठ कितने हैं?

चलो, तथ्य के तल पर ही बात कर लेते हैं। तथ्य के तल पर ही बात कर लेते हैं। इस समय, इस जगह पर — सत्य की नहीं, तथ्य की बात कर रहे हैं — बारह बजकर सत्तावन मिनट हुए हैं। ठीक? ये बारह-सत्तावन का आँकड़ा एकमात्र तथ्य है इस जगह…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org