सच्चे प्रेम की पहचान

सच्चे प्रेम की पहचान

प्रश्नकर्ता: क्या ज़िंदगी में किसी दूसरे व्यक्ति का साथ ज़रूरी है? आज मैंने प्रेम विषय पर आपको पढ़ा। आपने बताया कि प्रेम दूसरे से चिपकने का नाम नहीं है। मन शांत हो, अकेला हो तब उसे प्रेम समझ में आता है पर मैं तो अकेले नहीं रह पाती हूँ। क्या मुझे प्रेम कभी समझ में नहीं आएगा? अतीत में मुझे प्रेम हुआ था ऐसा मुझे लगा पर आज समझ आता है कि वो सच्चा प्रेम नहीं था। आगे से कैसे परखूँ कि प्रेम सच्चा है या नहीं?

आचार्य प्रशांत: बहुत सरल है। परखना है कि प्रेम सच्चा है या नहीं तो बस ये देख लो कि तुम्हारा प्रेम तुमको दे क्या रहा है — सुख या होश? शुरुआत में ही पूछा है कि क्या किसी दूसरे व्यक्ति का साथ ज़रूरी है? दूसरे व्यक्ति का साथ तो होगा ही होगा। क्या आप कभी किसी से संपर्क में ही नहीं आएँगे? या हो सकता है कि कोई कहे कि मैं बहुत आत्मीय-अंतरंग, निकट संबंध नहीं बनाऊँगा लेकिन फिर भी किसी-न-किसी सीमा तक तो आपको संबंधित होना ही पड़ेगा और जहाँ संबंध है वहाँ साथ है। तो जीवन में संबंधों से बचकर तो नहीं रहा जा सकता। संबंध तो बनेंगे ही बनेंगे। प्रश्न ये है कि उन संबंधों की गुणवत्ता क्या है? तो उसके लिए परखने का ये तरीका है कि देख लीजिए कि जिससे आप संबंधित हो रहे हैं उसके साथ से, उसके संबंध से, आपको सुख मिल रहा है या होश।

जब किसी के साथ से आपको सुख मिल रहा होता है तो आपको और ज़्यादा प्रेरणा मिल जाती है, कारण मिल जाते हैं, वैसा ही बने रहने के जैसे आप हैं। समझिए! कोई आया आपकी ज़िंदगी में और उससे आपको सुख मिल रहा है; सुख आपकी किस हालत को मिल रहा है? जो हालत आपकी फिलहाल वर्तमान में है ही। तो आपकी जो हालत है उसी में…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org