सच्चा प्रेम कैसा?

ये लड़के-लड़कियाँ कैमरे के सामने उछल-कूद मचा रहे हैं और कह रहे हैं, “इश्क़-इश्क़!” इन्हें इश्क़ का क्या पता? ये तो रूखे लौंडे है, क्यों भई! इश्क़ का पता तो किसी रुमी को होता है, किसी हाफिज़ को होता है, अरे बाबा-फरीद को होता है। तुम कहोगे, “पर वो तो बाबा-फरीद, सफेद दाढ़ी! बूढ़े!” वही असली इश्क़ है। ये थोड़े ही है कि फूल लेकर के एक-दूसरे के पीछे दौड़ने लग गए, झाड़ियों मे घुस गए, इलू-इलू गाने लगे, होटल में कमरा बुक करा लिया तो ये इश्क़ है; बचपना, नौटंकी, कठपुतली का…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org