सच्चा प्रेमी कौन ?

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार

रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार

संत रहीम

वक्ता: “जो तुम तोड़ो पिया, मैं नाही तोडू रे”, तुम्हारा ही हक़ है कि नाराज़ हो सको। क्योंकि तुम ही हो जो नाराज़ हो कर भी नाराज़ नहीं होओगे तुम ही हो जो गति करते हुए भी अचल रह जाओगे तुम ही हो जो बाहर से लाल-पीले होते हुए भी भीतर रंग-हीन रह जाओगे। हम नहीं हो सकते नाराज़ क्योंकि हम जब नाराज़ होते हैं तो हम नाराज़ ही हो जाते हैं हम जब क्रोधित होते हैं तो हम क्रोध ही बन जाते हैं। हम नहीं हो सकते नाराज़। तुम्हें पूरा हक़ है नाराज़ होने का।

सिर्फ़ उसी को नाराज़गी का हक़ है, जो नाराज़ हो ही ना सकता हो।

सिर्फ़ उसी को गति का हक़ है, जो अपनी जगह से हिल ही ना सकता हो।

सिर्फ़ उसी को हज़ारों में खो जाने का हक़ है, जो कभी खो ही ना सकता हो।

सिर्फ़ उसी को रूठने का हक़ है, जिसका प्रेम अनंत हो।

“रूठे सुजन मनाइए जो रूठे सौ बार”

तुम्हारा काम है रूठना।

तुम जब भी रूठोगे, हमें कुछ बताने के लिए ही रूठोगे

तुम जब भी रूठोगे, वो तुम्हारे प्रेम का ही प्रदर्शन होगा

तुम जब भी दूर जाओगे, हमें और करीब बुलाने के लिए ही जाओगे।

मूर्ख होंगे हम अगर तुम्हारे रूठने का और भी कोई अर्थ निकालें।

ये सु-बुद्धि है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org