सच्चा पछतावा
ज़्यादातर हमें जो दुख होता है, वह घटना का नहीं होता है, परिणाम का होता है क्योंकि परिणाम हमारी उम्मीदों के अनुसार नहीं आया था। हम जो चाहते थे वह हुआ नहीं, चोट लग गई, असफलता झेलनी पड़ी कुछ नुकसान हो गया — हमें इस बात का पछतावा रहता है। कर्म का पछतावा नहीं रहता।
कर्ता बिगड़ा हुआ था — कर्ता माने जिसने कर्म किया — कर्म गड़बड़ हुआ और कर्म के पीछे जो कर्ता बिगड़ा हुआ था, इन बातों का हमें नहीं पछतावा रहता। हमें पछतावा यह रहता है कि जो कर्म किए…