सच्चा जीवन जीना है तो रिश्ते कैसे रखें?

साधना माने अपने ऊपर काम करना। बेहतर बनने के संकल्प, अनुशासन, प्रक्रिया का संयुक्त नाम साधना है। एक आम आदमी भी बेहतर होना चाहता है तो एक आम आदमी भी साधक ही है। एक तरह से दुनिया में जितने लोग जी रहे हैं सब साधक है क्योंकि बेहतर होने की तमन्ना तो सभी में है। जो भी व्यक्ति थोड़ा और अच्छा, ऊँचा होने की इच्छा रखता हो, वही साधक हुआ। तो हम सब साधक है।

अब सवाल ये पूछा है कि मैंने अभी-अभी ताजी-ताजी साधना शुरू करी है। कह रहे है कि अब इस रस्ते पर मैं लोगो से रिश्ते कैसे रखूं ? रिश्ते कैसे रखूं की कोई बात नहीं, रिश्ते तो है ही पहले से। ये ऐसी सी बात है कि साधक पूछे की मैंने साधना शुरू की है बताओ मैं कैसा आदमी बन जाऊं ? बन क्या जाओगे तुम तो पहले से ही आदमी हो। तुम्हे बस ये करना है की तुम पहले से जैसे आदमी हो उस आदमी को सुधारना है। तुम्हे एक नया आदमी खड़ा नहीं करना है। जो आदमी पहले से है उस आदमी को रगड़-रगड़ के साफ़ करना है। भीतर से तो वो ठीक है, ऊपर-ऊपर उसने न जाने क्या जमा कर लिया है कचरा, उसकी सफाई करनी है, धुलाई करनी है, उसके जितने भ्रम हो गए हैं और उसने जितने तरह की धारणाएँ पाल ली हैं उन सब को हटाना है। इसी तरीके से साधने में पुराने रिश्ते की सफाई करनी है।

आत्मसुधार की प्रक्रिया संबंध सुधार की प्रक्रिया ही है। दोनों को अलग-अलग सोचना ठीक नहीं है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org