सचमुच इतने मजबूर हो कि सुधर नहीं सकते?
चैन, स्वास्थ्य और आंतरिक बल तुम्हारे लिए इतनी बड़ी चीज़ होने चाहिए कि तुम उनपर कभी आँच न आने दो — इतनी बड़ी चीज़। तुम्हें ताकत से इतना प्यार होना चाहिए कि अपनी असफलता और हार के बड़े-से-बड़े क्षण में भी तुम यह न कहो कि हार गया और टूट गया। जो ताकत का प्रेमी नहीं, वह परमात्मा का प्रेमी नहीं। जो बार-बार अपनी कमज़ोरी का रोना रोए, वो शैतान का भगत है।
सारी तपस्या का उद्देश्य ही यही होता है, समझिएगा, कि तुम जान सको कि तुम में कितनी ज़्यादा ताकत है। तपस्या होती ही है इसीलिए। तपस्या समझ लो एक तरह से प्रयोग होता है कि देखें तो सही कि हम में जान कितनी है। हम कितना झेल सकते हैं। अब उस झेलने में कष्ट तो हो रहा है लेकिन कुछ ऐसा नया तुम्हारे सामने खुल रहा है कि बड़ा आनंद आ रहा है। क्या खुल रहा है तुम्हारे सामने? तुम्हारी ताकत का नज़ारा खुल रहा है तुम्हारे सामने।
तुम्हें लगता था कि तुम एक सीमा से ज़्यादा झेल नहीं पाओगे, और तुम पा रहे हो कि तुम उस सीमा को कब का पार कर गए और अभी भी बर्दाश्त कर सकते हो। दर्द की सीमा को पार कर गए हो अगर तो दर्द तो खूब हो रहा होगा लेकिन दर्द जितना बुरा लग रहा है, उससे ज़्यादा, कहीं-कहीं ज़्यादा अतुलनीय आनंद आ रहा है यह जानकर कि मैं कितना ताकतवर हूँ कि इतना दर्द भी पी गया। दर्द से बचने में होगा कोई मज़ा, दर्द को जीत जाने में जो महा आनंद है, अगर तुमने वह नहीं पाया तो तुम जी क्यों रहे हो?
जी रहे हो तो दर्द तो होगा। तुम्हें और अपने ऊपर दर्द डालने की बहुत ज़रूरत भी नहीं है। बात यह है कि दर्द के बीचों-बीच तुम दर्द से अछूते हो या…