सचमुच इतने मजबूर हो कि सुधर नहीं सकते?

सचमुच इतने मजबूर हो कि सुधर नहीं सकते?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बचपन से जो लोगों ने सिखा दिया है, उसकी वजह से मैं भुगत रहा हूँ। अब क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत: देखो, व्यवहारिक होकर देखा करो। किसी की भी गलती हो, भुगत कौन रहा है? जल्दी बताओ। तुम बिलकुल सही जा रहे हो अपनी सड़क पर। और सड़क सकरी है, और तुम पैदल चले जा रहे हो। तभी गलत दिशा से तुम पाते हो कि एक दैत्याकार ट्रक तुम्हारी ओर चला आ रहा है। अब गलती किसकी है? ट्रक वाले की। और तुम कहो कि “मेरी कोई गलती नहीं है, मैं तो नहीं हटूँगा”। मत हटो। भुगतेगा कौन? या गलती का कानून बताओगे? गलती किसकी है? ठीक है, तो जब भिड़ंत होगी तो टाँग भी ट्रक की ही टूटनी चाहिए। तुम्हारी क्यों टूटे?

खोट निकालना दूसरों में बहुत भारी पड़ता है क्योंकि खोट तो तुमने निकाल दी दूसरे की, पर झेल कौन रहा है? ग़लती किसी की भी हो, हमे नहीं पता कि ग़लती किसकी है, पर भुगत कौन रहा है?

अगर तुम कहोगे कि ट्रक वाले की गलती है, जैसे तुमने कह दिया कि बचपन से हमें उलटी पट्टी पढ़ा दी गई इसलिए हम भुगत रहे हैं — इसमें हमारी गलती नहीं है, बचपन से हमें जिन्होंने गलत शिक्षा दी है, उनकी गलती है — वैसे ही ट्रक वाला बोल देगा, “मुझे दोस्तों ने ज़बरदस्ती आज पिला दी तो सारी गलती दोस्तों की है। मैं क्यों भुगतूँ?”

अंततः गलती किसकी है इसपर तो तुम कभी पहुँच ही नहीं पाओगे। कोई आखिरी निष्कर्ष निकलेगा ही नहीं। हाँ, दूसरों की गलती खोजते-खोजते कष्ट तुम ख़ुद बहुत सह जाओगे। और सुधरने के रास्ते में बड़ी- से-बड़ी बाधा यही होती है कि, “हमारी थोड़े ही गलती है। हमारी गलती नहीं है!”

ट्रक सही दिशा आ रहा हो कि गलत दिशा आ रहा हो, अगर सामने से चढ़ा ही आ रहा हो तुम्हारे ऊपर, तो बराबर की त्वरा से, बराबर की उर्जा से, कूदकर अलग हो जाना। यह मत कहना कि “जब हमारी गलती होगी तब हम झटके से कूदकर अलग हो जाएँगे और जब ट्रक वाले की गलती होगी तो पहले रुके रहेंगे, उसे दो-चार गाली सुनाएँगे, उसे उसकी गलती का एहसास कराएँगे, पुलिस को फोन करेंगे, और फिर हटेंगे”। नहीं साहब, गलती आपकी हो या गलती उसकी हो, यह प्रश्न ही व्यर्थ है। और अध्यात्म में यह प्रश्न व्यर्थ ही नहीं, घातक हो जाता है क्योंकि ले देकर गलती तो पता ही नहीं चलता कि मौलिक रूप से किसकी है। क्योंकि मौलिक तो मात्र परमात्मा होता है। अंततः तुम गलती खोजते-खोजते यही पाओगे कि कहोगे गलती उसकी है।

लो, निकाल लो गलती, क्योंकि सारी श्रृंखलाएँ अंततः जाकर के रुकेंगी तो वहाँ पर न। आखिरी कड़ी तो वही है। तो हर गलती की भी आखिरी कड़ी कौन है? वही है। यह सिद्ध करके तुमने पा क्या लिया कि भूल बनाने वाले(परमात्मा) की है? इससे तुम्हारा दर्द कम हो गया? नहीं, दर्द नहीं कम हुआ।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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