संस्कृत भाषा का महत्त्व
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, संस्कृत भाषा का महत्व क्या है?
आचार्य प्रशांत: आध्यात्मिक साहित्य सारा संस्कृत में है। अंग्रेज़ी व्यापार की भाषा है। और भाषा सिर्फ़ भाषा नहीं होती, भाषा एक पूरा संस्कार होती है। अगर किसी के मन पर अंग्रेज़ी छा गई है तो उसका मन व्यापारी हो जाएगा, गणित करेगा, हर बात में हानि-लाभ देखेगा; तुरन्त गणना करेगा कि, “मम्मी से मिल क्या रहा है मुझे?” ये है भाषा का मन पर प्रभाव।
संस्कृत साधारण भाषा नहीं है, इसको समझिएगा। ये भाषा आविष्कृत की गई थी आध्यात्मिक सिद्धांतों को दूसरे तक पहुँचाने के लिए। जो बात संस्कृत में कही गई है, वो बात किसी और भाषा में कही ही नहीं जा सकती। अभी जितनी वर्तमान भाषाएँ प्रचलन में हैं, उनमें संस्कृत के अगर क़रीब कुछ है तो हिंदी है। जो हिंदी के क़रीब नहीं है वो संस्कृत के क़रीब नहीं है; जो संस्कृत के क़रीब नहीं है वो फिर अध्यात्म के क़रीब नहीं हो सकता, और जो अध्यात्म के क़रीब नहीं है वो दुःख बहुत पाएगा।
ओशो का साहित्य है, आप अंग्रेज़ी में पढ़ोगे तो आपको मज़ा ही नहीं आएगा। दूसरी बात ये है कि ऐसा भी नहीं कि उनकी प्राथमिक भाषा हिंदी नहीं अंग्रेज़ी होती तो फ़र्क़ पड़ जाता। कुछ बातें ऐसी हैं — जैसे ऋषिकेश में ही ‘मिथ डेमोलिशन टूर (संस्था की ओर से आयोजित शिविर) होते हैं, वहाँ जो सभी श्रोता होते हैं वो विदेशी ही होते हैं न? वहाँ मुझे साफ़-साफ़ दिखाई पड़ता है कि कुछ बातें इन तक पहुँचाईं हीं नहीं जा सकतीं। उदाहरण के लिए, ये अध्यात्म में बहुत आगे नहीं बढ़ सकते क्योंकि ये कबीर नहीं पढ़ सकते। ये कबीर का अंग्रेज़ी अनुवाद पढ़ सकते हैं। और कबीर को…