संसार को जाने बिना उससे मुक्त कैसे होओगे?

प्रश्नकर्ता: सर, हम पी.एच.डी. कर रहे हैं और जब से अध्यात्म की ओर आए हैं तब से लगता है कि मेरा जो पढ़ाई का विषय है — मैं गणित में पी.एच.डी. कर रही हूँ — इन सबका कोई भी ज्ञान है, भौतिकी, रसायन शास्त्र, जीवविज्ञान इत्यादि का, उसमें मुझे रुचि ही नहीं होती। मुझे लगता है ये सब क्यों पढ़ रहे हैं, क्या मतलब है, क्या कारण है। और कभी लेकर के भी बैठती हूँ इन चीज़ों को तो सोचती हूँ कि इस चीज़ को पढ़ूँ प्रतियोगी परीक्षा के लिए कुछ करना है या और कुछ करना है लेकिन उस चीज़ में रुचि ही नहीं, मज़ा ही नहीं आता। मुझे लगता है कि क्या कारण है, मैं क्यों पढ़ूँ इस चीज़ को, इसमें इतना दिमाग क्यों लगाऊँ। दिमाग लगाने का मेरा मन ही नहीं करता है, मै बस चाहती हूँ कि इस चीज़ में कुछ ऐसा हो जिसे मैं ईश्वर से संबंधित कर पाऊँ। या इस चीज़ में भी वही चीज़ हो, मतलब ईश्वर से संबंधित ही कुछ निकल कर आए तब शायद मैं ध्यान उतना लगा पाऊँ। ये लगता है कि सब बेकार है, क्यों पढ़ाई करुँ, क्या करना है इस चीज़ का। समझ नहीं आ रहा कि इस चीज़ को पढ़ना चाहिए या छोड़ दूँ, खत्म कर दूँ; नहीं समझ में आ रहा कि क्या चीज़ किस तरीके से मैं करूँ। एकदम आखिरी स्टेज है मेरा, पी.एच.डी. फाइनल जमा करना है लेकिन मेरी स्थिति यह है कि सुबह से लेकर शाम हो जाती है, रात तक हो जाती है, मैं कभी एक किताब उठाकर के कोशिश भी नहीं करती पढ़ने की। मुझे पता है कि मुझे ये प्रश्नपत्र हल करना है और इसे जमा करना है। मुझे पता है कि मैं करूँगी तो एक दिन में हो जाएगा, लेकिन मेरा उठाने का दिल ही नहीं करता है। मैं सोचती हूँ कि क्या मतलब है, इससे कुछ परिणाम निकल कर नहीं आ रहा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org