संसार की नश्वरता समझ नहीं आती?

हम रुकते नहीं है, आगे बढ़ जाते है दोबारा नए सपने लेने के लिए, सोचते नहीं है कि आगे भी तो सपने ही सपने है। अभी एक सपना आया, वो टूटा, आगे और सपने लेकर क्या करोगे? मूलतः क्रिया तो वही चल रही होगी न! अलग क्या हो जाना है?

जीवन ठहरने का कुछ अवकाश नहीं देता, कुछ ठहरने की हमारी नियत नहीं होती क्योंकि नियत हो गई अगर ठहरने की तो मुक्त हो जायेंगे न। मोह बहुत है अभी, लालसा बहुत है, आसक्ति है कि दुनिया से अभी और सुख लें। वही सुख हम को चिपकाएँ रहता है फिर दुनिया से।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org