संवेदनशीलता ही प्रेम है

पुरुष एवेदँ सर्वं यद् भूतं यच्च भव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥

जो भूतकाल में हो चुका है, जो भविष्यकाल में होने वाला है और जो अन्नादि पदार्थों से पोषित हो रहा है, यह सम्पूर्ण परम पुरुष ही है और वही अमृतत्व का स्वामी है।

~ श्वेताश्वतर उपनिषद् (अध्याय ३, श्लोक १५)

आचार्य प्रशांत: समय की पूरी धारा भी वही है; समय की धारा मर्त्य है, और समय की धारा से बाहर जो अमृत है वह भी वही है। इस पूरे श्लोक का सीधा अर्थ यह है। समय की धारा में जो कुछ है, भूत भी, भविष्य भी और जो वर्तमान की माया है वह भी, सब कुछ परमात्मा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org