संवेदनशीलता क्या है?
कबीर क्षुधा कूकरी, करे भजन में भंग
वाकूं टुकड़ा डारि के, सुमिरन करूँ सुरंग
~ संत कबीर
प्रश्न: मैं खा रहा हूँ या शरीर अपना काम कर रहा है?
वक्ता: संवेदनशीलता का अर्थ ही यह है कि ‘मैं’ बीच में न आए। जहाँ ‘मैं’ बीच में आ जाता है, वहाँ संवेदनशीलता नष्ट हो जाती है। ये सवाल कि यदि सिर्फ़ शरीर हो तो वो क्या करेगा? मैं माँग रहा हूँ या वाकई शरीर की प्रक्रिया है…