संयम और मर्यादा किनके लिए अनिवार्य हैं?

प्रश्नकर्ता: जैसे वृत्तियाँ होती हैं। वृत्ति होती है, फिर विचार का तल आता है। तो विचारों में कई बार फिर भी होता है कि विचार मन में घूम रहे होते हैं तो आप फिर भी उसे कई बार पकड़ पाते हो कि हाँ, अच्छा ऐसा कुछ चल रहा है और आप उसे ट्रेस बैक करने की कोशिश करते हो। लेकिन बहुत बार ऐसा होता है कि वृत्ति से सीधा कर्म ही निकल जाता है। विचार भी नहीं आता, बस उस तरीके से एक्ट करने लग जाते हो। और आपको पता भी नहीं चलता कि आप बहुत ही अचेतन तरीके से व्यवहार कर रहे हो और यह बार-बार देखने में आता भी है, खुद भी मतलब ऑब्जर्वेशन होता है पूरे दिन भर। तो इसका तरीका और क्या है बचने का?

आचार्य प्रशांत: फिर जो इसकी विधि होती है, वह होती है संयम और मर्यादा। चूँकि यह जो वृत्ति है, यह बहुत स्थूल है इसलिए इस पर सूक्ष्म विधियाँ काम नहीं करेंगी। जब वृत्ति इतनी स्थूल हो कि वह सीधे स्थूल कर्म में परिणित हो जाती हो तो उसमें फिर कोई सूक्ष्म विधि काम नहीं करती है। कर्म क्या होता है? स्थूल। तो यह वृत्ति के स्थूल होने की निशानी है कि वह विचार को भी अनुमति नहीं दे रही, कि वृत्ति विचार भी नहीं बन रही, सीधे कर्म बन जा रही है। भीतर से भावना का आवेग उठा और सीधे कोई कर्म कर डाला। तो यह स्थूल वृत्ति की निशानी है।

स्थूल वृत्ति के लिए फिर आपको स्थूल ही उपाय चाहिए। स्थूल उपाय होता है स्थूल संकल्प। स्थूल संकल्प क्या होते हैं? आचरण में मर्यादा। कुछ बातों को अपने लिए एकदम अपरिहार्य कर देना होगा, अनिवार्य, आवश्यक। और कुछ बातों को माने कर्मों को — क्योंकि सारी बात अभी स्थूल कर्म के तल पर हो रही है — और कुछ कर्मों को अपने लिए बिल्कुल निषिद्ध कर देना होगा, एकदम वर्जित। क्योंकि विचार तो आपके पास है ही नहीं, सीधे वृत्ति है फिर कर्म है।

तो आपको कोई कैसे सिद्धांत बताया जाए। सिद्धांत तो विचार ही बनता है भीतर। और विचार को तो आप बायपास कर रहे हो। विचार को तो आप माध्यम ही नहीं बना रहे हो। वृत्ति सीधे कर्म में परिणित हो रही है। तो इसीलिए आपको अब शब्द काम नहीं आएँगे, क्योंकि शब्द तो विचार हैं। अब आपको आचरण में मर्यादा का संकल्प रखना होगा। यह स्थूल संकल्प कि मैं स्थूल कर्मों में ऐसी स्थूल मर्यादा रखूँगा। अब यही आपके काम आएगा।

आपको अपने-आपको यह आवश्यक करना होगा। आपको स्वयं को प्रणबद्ध करना होगा, शपथ लेनी होगी कि कुछ काम है जो मुझे करना ही नहीं है और कुछ काम है जो मुझे ज़रूर करने हैं। सोचूँगी नहीं क्योंकि सोचने का तो आपकी व्यवस्था में वैसे भी स्थान कहाँ है। आप अगर कुछ सोचने पर छोड़ोगे तो वह कभी होगा ही नहीं, क्योंकि सोच से तो आप हो ही नहीं। तो इसीलिए बस कुछ बातों को अपने को पूरी तरह वर्जित कर दो और कुछ बातों को अपने लिए आवश्यक कर दो, बिना सोचे।

रिचुअल्स का जन्म यहीं से हुआ था और इसीलिए हुआ था। समझ रहे हो बात को? कर्मकांड इसीलिए अपना महत्व पाता है, क्योंकि बहुत लोग ऐसे होते हैं जिनको विचार के…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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