संतो की वाणी उपनिषद की भाषा से अधिक सहज क्यों लगती है?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपको सुनता हूँ, तो आपके कथन सहजता से समझ आ जाते हैं, पर जब उपनिषद को पढ़ने बैठता हूँ, तो उसके कथन समझने में कठिनाई महसूस करता हूँ, इन दोनों में क्या अंतर हैं?
आचार्य प्रशांत: कुछ नहीं, वो एक भाषा है, वो एक तरीका है, वो एक बड़ा पांडित्यपूर्ण तरीका है, विद्वानों का तरीका है, मँझा हुआ तरीका है कुछ बाते कहने का। उन्हीं बातों को सन्तों ने और ज़मीन की भाषा में कहा है। तुम्हारा चित्त ऐसा हो जो पांडित्यपूर्ण भाषा को ज़्यादा आसानी से समझता हो, तो उपनिषद् हैं तुम्हारे लिए; तुम्हारा चित्त ऐसा हो जो आम बोल-चाल की भाषा को समझता…