संतुष्ट जीवन का राज़
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। पिछले सत्र में आपने ऐसी निर्ममता से चीर-फाड़ की कि मेरे सारे नक़ाब अस्त-व्यस्त हुए जा रहे हैं।
आज से दो साल पहले की बात है। मैंने किसी से पूछा, “यह अहंकार क्या होता है?” मुझे लगता था कि मुझमें तो अहंकार रत्ती भर भी नहीं है। अब आजकल जीवन को क़रीब से देख रहा हूँ तो भौचक्का रह जा रहा हूँ, मेरे अंदर तो अहंकार के सिवा और कुछ है ही नहीं। जब भी बोलता हूँ, तुलना करता हूँ, हर जगह अहंकार-ही-अहंकार है।