संगीत में छुपे खतरे
अधिकाँशतः संगीत उत्तेजक ही होता है। जो सोया हुआ है उसको वो उत्तेजित कर देता है। तुम्हारे अन्दर जो बलहीन पड़ी हैं भावनाएँ, उनको वो बल प्रदान कर देगा, तेज प्रदान कर देगा। तो वो तुम्हारे सामने आ जाएँगी। इसका मतलब ये नहीं है कि वो कुछ दैवीय है, इसका मतलब यही है कि और ख़तरनाक है मामला।
अधिकाँशतः संगीत बिकता भी इसीलिए है क्योंकि वो तुमको बड़े नए तरीक़े के अनुभव दे जाता है। जिस रूमानियत की तलाश में तुम भटक रहे हो, ख़ासतौर पर बनाया गया संगीत होता है, वो तुमको रूमानियत दे जाएगा। तुम आंतरिक तौर पर बड़ा गीला-गीला अनुभव करोगे।
ढूँढ रहे हो तुम कि कोई स्त्री मिल जाए, रूमानी मोहब्बत हो जाए, और कोई मिल नहीं रही। विकल्प के तौर पर तुम रात को दो बजे कोई गाना, कोई ग़ज़ल सुन लेते हो। अब बिल्कुल तुम्हारे दिल में ऐसे भाव आने लगते हैं कि — ‘वाह मोहब्बत ही हो गई’।
ऐसे ही तो बिकता है संगीत। इसमें कोई मुक्ति या देवत्व नहीं है। ये तुमको और फँसाया जा रहा है।
मात्र विशिष्ट संगीत है जो बंधनों को काटता है।
बहुत ही ख़ास स्त्रोत से आया हुआ।
ध्यान से उठता है संगीत, तब उसमें वो विशिष्ट गुणवत्ता आती है।
इसीलिए शास्त्रीय संगीत होता दूसरे आयाम का है।
या तो शास्त्रीय संगीत हो, या संतों के वचन हों। संतों के वचनों को तुम बेसुरा होकर भी गा दो, तो भी उनमें मुक्ति प्रदान करने की क्षमता रहती है। इनके अलावा बाकी सबकुछ जो संगीत के नाम पर चल रहा है, वो तुम्हारे आंतरिक कोलाहल को ही बढ़ाएगा।