संगठित धर्म और सनातन धर्म में भेद

वो कहानी सुनी ही होगी, एक गाँव में एक फ़क़ीर रहता था, तो पूजा के लिए बुलावा आए, अज़ान हो, और वो उपस्थित हो जाए। सालों से ऐसे ही चल रहा था, मान लो कि सौ-साल से ऐसा चल रहा था। एक दिन नमाज़ की ख़बर भेजी गई, अज़ान हुई, वो नहीं आया, लोगों ने कहा, “ये तो मर ही गया है। सौ सालों से आ रहा था, आज नहीं आया, और कोई कारण नहीं, मर गया ये।”

तो लोग दुखी होकर के उसके झोपड़े पर पहुँचे, मरा पड़ा होगा (ऐसा सोचकर)। वो वहाँ…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org