संकोच माने क्या?
‘संकोच’ का उल्टा अर्थ मत निकाल लेना। कोई संकोच नहीं करता, इसका अर्थ यह नहीं है कि वो पूरा मनमौजी हो गया है, निरंकुश हो गया है। ‘संकोच नहीं है’ इसकी एक ही जायज़ वजह हो सकती है — स्पष्टता। स्पष्टता में अगर शांत भी बैठे हो, तो बढ़िया।
हम संकोच न होने का आमतौर पर यह अर्थ निकालते हैं कि यह बिंदास है, कुछ भी जाकर बोल आता है। यह अधूरी बात है, आधी बात है।