श्रीमद्भगवद्गीता — कर्मयोग

आज के युग में श्री कृष्ण का कर्मयोग जितना प्रासंगिक है शायद उतना कभी नहीं था।

श्री कृष्ण कहते हैं कि हमारा अधिकार सिर्फ़ कर्म करने पर है उसके फल पर नहीं, परन्तु ऐसा जीवन में घटित होता महसूस नहीं होता।

जानिए वास्तविक कर्मयोग और उसकी जीवन में सार्थकता को आचार्य प्रशांत के साथ ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के तीसरे अध्याय पर आधारित इस बोधशाला में।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org