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श्रद्धा क्या है? आत्मविश्वास से श्रद्धा का क्या संबंध है?
श्रद्धा कीदृशी?गुरुवेदान्तवाक्यादिषु विश्वासः श्रद्धा।
भावार्थःश्रद्धा कैसी होती है?गुरु और वेदांत के वाक्यों में विश्वास रखना ही श्रद्धा है।
~ तत्वबोध
प्रश्न: आचार्य जी प्रणाम। ‘श्रद्धा’ क्या है? ‘आत्मविश्वास’ से ‘श्रद्धा’ का क्या सम्बन्ध है?
उपरोक्त वक्तव्य से यह साफ़-साफ़ समझ आ रहा है कि क्यों गुरु के वचनों को हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए। गुरु के जीवन को देखकर हमें अपने जीवन में सुधार लाना चाहिए। इसी को ‘श्रद्धा’ बताया गया है। परन्तु बहुत सूक्ष्म रूप से एक डर बना रहता है कि – कहीं पथ से हट न जाऊँ। मन बड़ा चपल है, माया कब हावी हो जाए मन पर, कुछ भरोसा नहीं।
क्या श्रद्धा के लिए आत्मविश्वास भी आवश्यक है?
आचार्य प्रशांत जी:
श्रद्धा के लिए प्यास ज़रूरी है।
अडिग बने रहने के लिए, प्रेम चाहिए।
आत्मविश्वास तो – खुद पर भरोसा – हो गया। तुमने खुद को ही सबसे भरोसेमंद बना लिया? तुम भरोसे के इतने ही काबिल होते, तो फिर श्रद्धा इत्यादि की, किसी साधन की ज़रुरत ही क्या थी?
प्रेम चाहिए।
आदमी स्वार्थ का पुतला है।
गुरु के पास भी तुम्हें स्वार्थ ही लेकर के आएगा, और ये अच्छी बात है। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम कितने प्यासे हो। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा स्वार्थ गुरु के पास सिद्ध हो रहा है, और तुम्हें पता होना चाहिए कि अगर हटोगे तो प्यास फिर जलाएगी तुमको। यही चीज़ अडिग रखेगी तुमको।