शूद्र कौन? शूद्र को धर्मग्रन्थ पढ़ने का अधिकार क्यों नहीं?

सनातन धर्म वैदिक धर्म है, वेद उसके केंद्र में है, तो सनातन धर्म से संबंधित तुम्हें कोई प्रथा समझनी हो, कोई पुस्तक समझनी हो, कोई नियम-कायदा समझना हो, वो तुमको समझना पड़ेगा वैदिक सिद्धांतों को ही आधार बना के क्योंकि वैदिक सिद्धांत ही सनातन धर्म के केंद्र में है। वो पहले सूत्र है और जो वैदिक सूत्र हैं वो पाए जाते हैं वेदांत में। वेदों का ही जो जीवन दर्शन, आत्म-दर्शन संबंधित हिस्सा है, उसको कहा जाता है वेदांत। उसे वेदांत इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वो वेदों का शिखर है।

वेदों के पास जब जाओगे तो वो आदमी को देह मानने से इनकार करते है। पहली चीज़ तुम्हें ये सिखाई जाती है कि ये पशु का काम है कि वो एक देह केंद्रित जीवन जिए, वो तुमको सिखाते हैं कि तुम इस वक्त एक अपूर्ण चेतना हो, वो अपूर्ण चेतना अहंकार कहलाती है, उस अपूर्ण चेतना की जो सच्चाई है वो आत्मा कहलाती है। वो अपूर्ण चेतना जीवन भर कोशिश करती रहती है पूर्ण होने की। जिस पूर्णता को वो पाना चाहती है, उस पूर्णता को ही सत्य या आत्मा कहते है। ये वेदांत का मूल-भूत सिद्धांत है — शरीर तुम हो नहीं, मन भी तुम एक झूठे तल पर हो। चेतना के तल पर लोग अलग-अलग तरीके के होते हैं क्योंकि अपूर्णताएँ कई तरीके की हो सकती है।

जन्म के आधार पर, तुम्हारे कुल और ख़ानदान के आधार पर तो वर्गीकरण हिंदू धर्म में हो ही नहीं सकता क्योंकि वेदांत का मूल सिद्धांत ही यही है कि शरीर तो तुम हो ही नहीं, जब तुम शरीर हो ही नहीं तो शरीर के आधार पर तुम्हारा वर्गीकरण कैसे हो गया? तो शरीर के आधार पर न कोई पंडित है, न कोई…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org