शिव के नाम पर व्यर्थ कहानियाँ मत उड़ाओ

प्रश्नकर्ता (प्र): नमस्कार अचार्य जी, आज महाशिवरात्रि है तो महादेव के बारे में कुछ बता दीजिए कि कैसे उनसे हमारी सभ्यता जुड़ी हुई है और कैसे हम मानवों के लिए वे भगवान हैं? किस तरह से वे हमारे लिए उपयोगी हैं? हमें इस तरह से बता दीजिए कि आज ही हम शिवमय हो जाए।

आचार्य प्रशांत (आचार्य): यह ऐसे ही सवाल है कि कोई पूछे कि, “बताइए कब ऐसे हुआ और कैसे ऐसे हुआ कि पेड़ की पत्ती का संबंध पेड़ की जड़ से हो गया?” सिविलाइजेशन, सभ्यता की बात कर रहे हैं। पूछ रहे हैं कैसे उसका महादेव से संबंध बैठा। पूछा है कि कैसे वे उपयोगी हैं हमारे लिए।

सभ्यता तो इंसान की बनाई हुई चीज है न? इंसान की ही जो जड़ है, इंसान का ही जो केंद्र बिंदु है उसकी तरफ इशारा करने के लिए शिव शब्द की रचना हुई। शिव कोई व्यक्ति थोड़े ही हैं। वो कोई ऐसी इकाई नहीं है जो अपना कोई निजी, पृथक या विशिष्ट व्यक्तित्व रखती हो। तुम अभी प्रश्न पूछ रहे हो क्योंकि समाधान चाहिए। ये जो समाधान पा लेने की चाह है, यह मन का शिवत्व के प्रति प्रेम है। और अगर मिल गया समाधान तो वह है मन का शिवत्व में लीन हो जाना। हम सब जहाँ पहुँचना चाहते हैं, हमारी एक-एक गतिविधि, जिस जगह को, बिंदु को, अवस्था को हाँसिल करने के लिए है, उसका नाम — शिव।

जिस तरीके से तुमने प्रश्न रखा है, ऐसा लग रहा है जैसे शिव को कोई ऐतिहासिक पात्र समझ रहे हो कि जैसे आदिकाल में कोई शिव हुए थे या महादेव हुए थे। इस तरह की बातों से बचना।

जो समय के पार हो, उसे समय के किसी बिंदु पर अवस्थित नहीं करते। न तो यह कह देते हैं कि वह कल-परसों का है, न यह कह देते हैं कि वह आदिकालीन है। न यह कह देते हैं कि वह सागरों में विराजता है, न यह कह देते हैं कि वह पहाड़ की चोटियों पर बैठा है।

जो समय में कहीं पर नहीं है वो किसी स्थान पर भी नहीं हो सकता। सब समय, सब स्थान मन का विस्तार हैं और शिव मन की मंजिल हैं, मन का केंद्र हैं, मन की प्यास हैं। सब स्थानों के नाम होते हैं क्योंकि सब स्थान तो मन के विस्तार में ही हैं। मन के विस्तार में जो कुछ होगा उसका नाम होगा, उसकी कहानी होगी, उसके गुण होंगे। लेकिन जो मन के केंद्र पर है, न उसका कोई नाम होता है, न उसकी कोई कहानी होती है, न उसका कोई गुण होता है, न उसका कोई स्थान होता है। लेकिन हमारी ज़िद कि कुछ तो उसको कहकर बुलाना है तो फिर जो छोटे-से-छोटा, अतिसंक्षिप्त और शुभ नाम हो सकता था, वो दे दिया शिव।

तो शिव इसलिए नहीं हैं कि उनके साथ और बहुत सारे किस्से जोड़ दो। शिव इसलिए हैं ताकि हम अपने किस्सों से मुक्ति पा सकें। शिव हमारे सब किस्सों का लक्ष्य हैं, गंतव्य हैं। शिव को भी एक और किस्सा मत बना लो।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org