शिवलिंग का रहस्य क्या? शिवलिंग की पूजा क्यों?

प्रश्नकर्ता: शिवलिंग क्या है? इसकी पूजा क्यों की जाती है?

आचार्य प्रशांत: लिंग का जो आध्यात्मिक अर्थ है वो प्रतीक और प्रमाण दोनों होता है। लिंग माने प्रतीक और लिंग माने प्रमाण और इन्हीं दोनों अर्थों के कारण शिवलिंग पूजनीय होता है। एक अर्थ में शिवलिंग द्योतक होता है निराकार सत्य का, कैसे? वेदों में, अथर्ववेद में स्तंभ का उल्लेख आता है — स्तंभ माने खम्बा — और किस अर्थ में स्तंभ का उल्लेख आता है? संभालने वाले के अर्थ में। कि जैसे एक खम्बा होता है उस पर आप काफी कुछ टिका सकते हैं न? एक खम्बा होता है वो सहारा बनता है, अवलंभ बनता है। उसपर टिककर खड़े हो सकते हो, उससे कुछ बाँध सकते हो। तो उस अर्थ में कहा जाता है, कहा गया है कि ब्रह्म एक स्तंभ की भाँति है, सत्य एक स्तम्भ की भाँति है जिसने सब देवताओं को — अथर्ववेद कहता है, “तैंतीसों देवताओं को अपने में बैठा रखा है या अपने में सहारा दे रखा है, पूरा संसार ही उसपर आश्रित है।” प्रतीक भर है ‘स्तंभ’। वही जो स्तंभ है वो आगे चलकर के शिवलिंग हो गया, निराकार ब्रह्म का प्रतीक।

अब इतना पुराना ये प्रतीक है शिवलिंग कि मोहनजोदड़ो की खुदाई हुई वहाँ से भी बहुत सारे शिवलिंग मिले। तो आप समझ लीजिए कि कम-से-कम पाँच से छह हज़ार साल पुराने शिवलिंगों के तो प्रमाण ही मिलते हैं। कि आप अगर वेदों को लें या शैव मत वालों को लें या लिंगायत मत वालों को लें सबकी थोड़ी-थोड़ी अपनी-अपनी अलग-अलग मान्यताएँ हैं शिवलिंग को लेकर के। पुराण कहानियाँ बताते हैं, उनमें मान्यताएँ नहीं हैं। तो शिव-पुराण में कुछ कहानियाँ हैं, लिंग पुराण में कुछ कहानियाँ हैं। फिर आधुनिक समय में प्राच्य विद्या विशारद हुए तो उनको जैसा अपनी पाश्चात्य दृष्टि से समझ में आया तो उन्होंने कह दिया — नहीं, ये शिवलिंग तो वास्तव में मानवीय लिंग का ही रूप है, और ये जिस पीठ पर स्थापित है वो मानवीय योनि मात्र है।

तो बहुत तरह की उसमें कहानियाँ बना दी गईं, प्रचारित कर दी गईं लेकिन जो कुल मूल बात है वो ये है कि शिवलिंग निराकार और साकार सत्य दोनों का एक साथ प्रतिनिधित्व करता हैं। निराकार सत्य का इस रूप में कि वो अवलंबन है। याद रखो उसको जो अवलंबन है — अवलंबन माने सहारा — याद रखो उसको जिसके सहारे ये पूरी दुनिया खड़ी हुई है। जैसे आप एक खम्बे को प्रतीक बना लें कि ये — और कोई भी प्रतीक हो सकता था, ये एक बस बात है कि एक स्तंभ को आपने प्रतीक बना लिया। तो इसके सहारे पूरी दुनिया चल रही है, निराकार के सहारे सब साकार चल रहा है। तो एक तल पर उसका ये अर्थ हुआ।

और दूसरे तल पर क्या अर्थ हुआ?

दूसरे तल पर अर्थ हुआ कि पुरुष है जो प्रकृति के बीचों-बीच शांत, स्थिर बैठा हुआ है। योनि प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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