शिवमय होना क्या है?
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प्रश्नकर्ता: शिवमय होना क्या है?
आचार्य प्रशांत: बहुत मुस्कुरा रहे हो बेटा! यही होता है शिवमय होना। पूछ रहे हैं कि “शिवमय होना क्या होता है?” यही है, सोमस्त हो जाओ। सोम जानते हो न क्या होता है, क्या होता है? ख़ुमार; सोमस्त हो जाओ, यही होता है शिवमय होना।
भोले-बाबा का तो ऐसा है कि उनसे दानव तो डरते ही थे, देवता भी बहुत डरते थे; बाकी सब भरोसे के थे, ब्रह्मा, विष्णु। कोई महल में रह रहा है, कोई राजा कहला रहा है, किसी ने मुकुट धारण कर रखा है, किसी को खीर का समुद्र मिला हुआ है, कोई अति-ज्ञानी है, वेद लेकर घूम रहा है। और इनका क्या है, भोले-बाबा का? ये नंग-धड़ंग बिराजे हुए हैं बिलकुल, और चुपचाप बैठे रहते हैं, और? गाँजा का सेवन करते रहते हैं। ये सांकेतिक है, इसका ये मतलब नहीं है कि उन्हें गाँजे की लत लगी हुई थी, इसका मतलब है एक ख़ुमारी, एक सुरूर, एक अतींद्रिय होश, जिसको सांसारिक-दृष्टि बेहोशी बोलेगी। एक ऐसा होश जो तुम्हारी समझ में, तुम्हारी पकड़ में नहीं आना है, तो फिर तुम सांकेतिक तौर पर कहते हो भंग, कि “भाँग घुटती है वहाँ तो!” वहाँ भाँग नहीं घुटती, तुम भाँग ही हो, तुम भाँग पैदा हुए हो, पर तुम इस भँगई को कहते हो ‘होश’, और फिर इसकी तुलना में, इसको केंद्र बना कर के जब तुम भोले-बाबा को देखते हो तो तुम्हें लगता है कि वहाँ ज़रा बेहोशी है, क्योंकि कुछ हिसाब ही नहीं पता चलता कि ये कर क्या रहे हैं।
साँप गले में डाल रखा है, साँड (बैल) खड़ा कर रखा है, कर क्या रहे हैं? आस-पास भूत-प्रेत नाच रहे हैं। कहने को तुम प्रजापति हो, पशुपति हो, हर चीज़ के पति हो, पर कहीं झोपड़िया नहीं मिली तुम्हें? अजीब स्थिति है! वो लड़का है, उसको हाथी का मुँह लगा दिया, ये कर क्या रहे हो? काहे को पैदा किया था? तुम्हारे जैसों की तो शादी नहीं होनी चाहिए। दूसरों की पत्नियाँ हैं, उन्हें सुख-ही-सुख है, यहाँ बेचारी पार्वती को आत्मदाह करना पड़ा, फिर उसने अथक साधना करी, तब तुम हासिल हुए, और तुम करते क्या हो? तुम उसे भी कहते हो, “ये भूत-प्रेत के साथ तू भी बैठ!” वो बेचारी भी सोचती रहती होगी कि, "कहीं थोड़ा पति के साथ दो-चार पल मिल जाते अकेले में", काहे को मिले! माथे से गंगा बहाएँगे, और ख़ुद कभी नहीं नहाएँगे। अब ऐसों की पत्नी की क्या हालत होती होगी सोचो, कि पति नहाने से ही इंकार कर रहे हैं, दुनिया-भर के लिए गंगा बहा रखी है। यहाँ (सर पर) बैठा रखा है चाँद, और बीवी को कभी नहीं कहते कि “मेरी चाँद!”
कामदेव अपनी तरफ़ से शायद मदद ही करने आया होगा, कि इनके भीतर भी ज़रा कामना उठा दूँ, नहीं तो यूँ ही ये तो ऐसा लगता है कि शादीशुदा-ब्रह्मचारी हैं। वो बेचारा आया, उसको धर लिया। दुनिया-भर को नचाता है कामदेव, और उसको धर लिया; और धर ही नहीं लिया, फूँक दिया, वो भस्म हो गया। वो भी मन्नतें माँग रहा, कि “बाबा! मैं बुरा क्या करने आया था? मर्द हो, विवाहित हो, तुममें ज़रा कामोत्तेजना प्रवाहित करने आया था।" बोले, “तू आ तो, तुझे कामोत्तेजना बताता हूँ।" एक तरफ़ तो…