शिक्षा व्यवस्था से घुटन, और बदलाव
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शिक्षा तंत्र तुमसे बाहर की एक चीज़ है, वो बदले या न बदले या कब बदले, वो मुद्दा प्राथमिक नहीं है। तुम्हारा जीवन है तुम्हारे बिल्कुल करीब, उसका बदलना ज़रुरी है।
महत्वाकांक्षा बहुत बड़ी बीमारी है और हमारी शिक्षा हमें महत्वकांक्षी ही बनाती है। प्रतिस्पर्धी मन बीमारी है और हमारी शिक्षा प्रतियोगिता पर ही आधारित है। डर और लालच, दोनों मन की बड़ी बीमारियाँ हैं और हमारी शिक्षा ऐसी है जो डराती भी है और लालच भी देती है। जब शिक्षा के ये जो मूल आधार हैं, जिन स्तंभों पर वो खड़ी है, वही इतने गड़बड़ हैं तो ज़ाहिर सी बात है की अगर तुम थोड़े भी स्वस्थ हो, और तुममें थोड़ा भी जीवन है, थोड़े भी सजीव हो तो घुटन तो होगी ही।
जो शिक्षा तुम्हें आनंद न सिखाती हो, प्रेम के विपरीत ले जाती हो, वो शिक्षा दम तो घोटेगी ही।
जो ये देखने लगता है कि शिक्षा व्यवस्था में बड़ी गहरी कमियाँ हैं, न सिर्फ़ कमियाँ हैं, बल्कि हानियाँ हैं, वो फिर ये भी समझ जाता है कि अब मुझे अपना जीवन कैसे जीना है।
घुटन तुम्हें, याद रखना, शिक्षा की व्यवस्था से नहीं हो रही है, तुम्हें घुटन हो रही है आनंद के अभाव से, तुम्हें घुटन हो रही है मुक्ति, प्रेम के अभाव से, तुम्हें घुटन हो रही है आत्मज्ञान के अभाव से।
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