शास्त्रसम्मत तप और मनःकल्पित तप क्या हैं? दान कब प्रेम बन जाता है?

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः।।

जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मन:कल्पित घोर तप को तपते हैं, वे दम्भ और अहंकार से युक्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त हैं।

—श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १७, श्लोक ५

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, नमन। तप किसे कहते हैं और शास्त्रसम्मत एवं मन:कल्पित तप का भेद क्या है? कृपया समझाने की अनुकम्पा करें।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org