शांति का प्रयास ही अशांति है
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आदमी जो कुछ भी करता है वो करता किसी इच्छा के वशीभूत होकर ही है और हर इच्छा आख़िर में परम की ही इच्छा है।
लेकिन आप जो कुछ भी करते हैं, उस पर तुरंत ही माया कब्ज़ा कर लेती है। आपका बड़े से बड़ा प्रयास भी अंततः जिसकी तरफ जाने के लिए होता है, उसकी तरफ जाने की बजाय, उसके विपरीत मोड़ दिया जाता है।
हम जो कुछ भी करना चाहते हैं, पाना चाहते हैं, उसका आख़िरी लक्ष्य होता है कि शांति मिल जाएगी, चिंताओं से मुक्त हो जाएंगे, आनन्द में रहेंगे। हम सोचते हैं कि कुछ ‘कर’ के हम वहाँ पहुँच जाएंगे जहाँ शांति है, मुक्ति है, आनन्द है। करा ही इसीलिये जा रहा है कि शांत हो सकें, पर जहाँ पहुँचना है, वहाँ तो कभी पहुँचते नहीं, तो शांति कभी मिलती नहीं। करने की प्रक्रिया हमें और अशांत कर जाती है।
खेल देखियेगा, आप सब कुछ कर इसलिए रहे हैं ताकि अंततः शांत हो सकें, अंततः आनंदित हो सकें, पर शांति, आनंद तो कभी मिलते नहीं। आपके सारे कर्तत्व से, आपकी सारी प्रक्रियाओं से, सारी कोशिशों से भी न शांति आ रही है, न आनंद आ रहा है। इतना ज़रुर है कि ये कोशिशें हमें गहरी अशांति से भर गई हैं। परम तक पहुँचने की, और ना कहिये उसे आप ‘परम’, शांति ही कह लीजिये, शांति तक पहुंचने की हमारी सारी कोशिशें ही हम पर उल्टी पड़ गई हैं, हम पर भारी पड़ गई हैं। क्या यही कहानी नहीं है हमारी?
आप जो भी कर रहे हैं, किसलिए कर रहे हैं? आपके क्या लक्ष्य हैं? क्या चाहिये? सुकून। और जो कर रहे हैं, वही कर-कर के सुकून दूर हुआ जा रहा है- यही माया का बड़े से बड़ा खेल है।
वो आपको पहले तो ये बताती है कि सुकून दूर है, कुछ करो, और ज्यों ही आप करने में उद्यत होते हो, वो जो दूर था, वो और दूर हो जाता है। या ये कह लीजिये कि ज्यों ही करने में उद्यत होते हो, जो पास था, वो दूर हो जाता है।
पहला भ्रम आपको ये है कि वो दूर है। वो दूर कभी था ही नहीं, वो पास था। माया, पहला भ्रम आपको ये देती है कि वो दूर है। और माया दूसरा भ्रम आपको ये देती है कि कुछ कर-कर के उसको पाया जा सकता है। इन दोनों का नतीजा बस ये होता है कि जो पास ही है, उसको आप दूर मानकर उसको पाने की चेष्टा में संलग्न हो जाते हैं और ये पाने की चेष्टा ही जो पास है, उसे दूर प्रतीत करा देती है।
जहाँ कहीं भी कर्ता होने की और अर्जित करने की भावना है, वहाँ जो मिला हुआ है, वो भी छिन जाता है।
जिसने भी ये सोचा कि अर्जित कर लूँगा, वो अंततः पाएगा कि अर्जित करने को तो कुछ था ही नहीं। अर्जित करने की प्रक्रिया में जो हमेशा से मिला हुआ था, उससे भी दूर हो गए। अर्जित करने को तो वैसे भी कभी कुछ नहीं था। हाँ, अर्जित करने की प्रक्रिया में जो मिला ही हुआ था, उससे भी दूर हो गए।
आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है।