शरीर माने मृत्यु

देह धरे का गुन यही, देह देह कछु देह । बहुरि न देही पाइए, अबकी देह सो देह ।।

–कबीर

वक्ता: जिसने बोझ उठा रखा हो, उसके लिए एकमात्र कर्त्तव्य क्या है? बोझ उतार देना। जिसने जलता हुआ कोयला पकड़ रखा हो, उसके लिए करणीय क्या है? कोयला छोड़ देना। और जिसने देह को पकड़ रखा हो उसके लिए करणीय क्या है? देह को छोड़ देना ।

“देह धरे का गुन यही, देह देह सो देह “

देह को दे दो- और यह बात सिर्फ़ उससे कही जा रही है जिसने देह पकड़ रखी है, जिसने देह धर रखी है। “देह धरे का गुन यही”, जिसने देह पकड़ रखी है उससे कबीर कह रहे हैं कि देह को दे दो, देह को छोड़ दो। जैसे कोयला छोड़ देते हो, जैसे ज़हर छोड़ देते हो, जैसे बोझ छोड़ देते हो, वैसे ही इस देह को भी छोड़ दो। और छोड़ने का अर्थ यह नहीं है कि जाकर कुएँ में कूद जाओ। क्योंकि कुएँ में यदि देह लेकर कूद रहे हो, तो छोड़ी कहाँ। या तो कुएँ में देह को छोड़कर कूदते। जो लोग आत्महत्या करते हैं, वो शरीर में बड़ी गहराई से विश्वास करते हैं। क्योंकि वो मारते भी हैं तो किसको मारते हैं? देह को।

जो है ही नहीं, क्या तुम उसको मारते हो? सपने में कोई आकर तुम्हें परेशान कर रहा था, उठने के बाद क्या उसे गोली मारते हो? जब जान जाते हो कि है ही नहीं तो उसे मारने का प्रश्न ही नहीं उठता ना। जो आत्महत्या कर रहा है, वह बड़ा सांसारिक आदमी है, उसका देह में बड़ा गहरा विश्वास है, तभी तो वह देह को मारना चाहता है। देह को छोड़ने का अर्थ है- देह के साथ जो तुमने पूरी दुनिया बसा रखी है, जो दिन-रात तुम्हारे मन में देह-देह और पदार्थ ही नाचता है, उसको छोड़…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org