शरीर के लिए योग, मन के लिए वेदांत

शरीर के लिए योग, मन के लिए वेदांत

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, अर्जुन कहते हैं कृष्ण से कि ‘धृतराष्ट्र पुत्र चाहे मुझे मार भी दें तो भी उनसे लड़ना तो ग़लत ही है।‘ हमारे आम जीवन में भी ऐसे ही चलता रहता है कि हम इमोशनल ब्लैकमेल (भावनाओं से किसी को नियंत्रित करना) करते हैं बहुत बार, या फिर कोई और हमें ब्लैकमेल करता है कि मर जाएँगे अगर तुम ये नहीं करोगे। या कभी हमें पता है कि अपराध करने पर मौत की भी सज़ा हो सकती है फिर भी ख़ुद मिट जाने के लिए तैयार हो जाते हैं शरीर रूप से। कई बार अपने सम्मान के लिए अपनी जान गँवा देते हैं। तो ये क्या है?

आचार्य प्रशांत: पशु ऐसा नहीं करते। दो पशुओं में अगर लड़ाई हो रही हो तो आमतौर पर जो हार रहा हो वो प्राण रक्षा के लिए दुम दबा कर भाग जाता है। पशु ऐसा नहीं करेंगे कि सम्मान की ख़ातिर आख़िरी साँस तक लड़ेंगे। मनुष्य ऐसा इसलिए करता है क्योंकि मनुष्य का तादात्म्य शरीर की अपेक्षा मन से ज़्यादा है। पशु का तादात्म्य शरीर से है तो पशु शरीर रक्षा के लिए कुछ भी कर सकता है; मनुष्य शरीर से ज़्यादा मन है, मनुष्य मन रक्षा के लिए कुछ भी कर सकता है। यहाँ तक कि मनुष्य मन रक्षा के लिए अपने शरीर को सौ तरह के कष्ट दे सकता है, और बहुत ही विरल स्थितियों में वो मन की रक्षा के लिए शरीर की क़ुर्बानी तक दे सकता है।

इसीलिए पशु आत्महत्या नहीं करते। ये अच्छी बात है कि मनुष्य मन को शरीर से ऊपर का स्थान देता है। लेकिन ये बात तो दो रूप ले सकती है। एक तो ये कि मन को उठाने के लिए आप शरीर की बलि दे दो, जैसा ऋषियों ने करा, जैसा बहुत सारे योद्धाओं ने करा कि किसी ऊँचे लक्ष्य के लिए उन्होंने शरीर को क़ुर्बान कर…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org